SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुयोगद्वारसूत्र [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूच्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण - क्या है ? २५८ [3] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना का प्रमाण अंगुल का असंख्यातवां भाग है । [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूच्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण कितना है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना का प्रमाण क्या है ? [उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना का प्रमाण जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त अपर्याप्त भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवें भाग है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [3.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व प्रमाण है । विवेचन — प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना का जघन्य और उत्कृष्ट दोनों अपेक्षाओं से सात अवगाहनास्थानों में प्रमाण बतलाया है। आगे खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाते हैं । (४) खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं०, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्को० धणुपुहत्तं । सम्मुच्छिमखहयराणं जहा भुयपरिसप्पसम्मुच्छिमाणं तिसु वि गमेसु तहा भाणियव्वं । गब्भवक्कंतियाणं जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगु० असं०, उक्को० अंगु० असं० । पज्जत्तयाणं जह० अंगु० असंखे०, उक्को० धणुपुहत्तं । [३५१-४ प्र.] भगवन् ! खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [३५१-४ उ.] गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है तथा सामान्य सम्मूच्छिम खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना सम्मूच्छिम जन्म वाले भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के तीन अवगाहना स्थानों के बराबर समझ लेना चाहिए। है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy