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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २५७ [प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट छह गव्यूति प्रमाण है। विवेचन— यहां चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की सात अवगाहनास्थानों की अपेक्षा प्रत्येक की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना का प्रमाण बतलाया है। गर्भज चतुष्पदों की छह गव्यूतिप्रमाण उत्कृष्ट अवगाहना देवकुरु आदि उत्तम भोगभूमिगत गर्भज हाथियों की अपेक्षा जानना चाहिए। अब स्थलचर के दूसरे भेद उरपरिसॉं की अवगाहना का प्रमाण बतलाते हैं[प्र.] भगवन् ! उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट योजनसहस्र (एक हजार योजन) की है। [प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट योजनपृथक्त्व है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूच्छिम उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। [प्र.] पर्याप्त सम्मूछिम उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की कितनी अवगाहना है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट योजनपृथक्त्व की है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण कितना [उ.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना एक सहस्र योजन की है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भजउरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी [उ.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। विवेचन— प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में स्थलचर के दूसरे भेद उरपरिसर्पपंचेन्द्रिय तिर्यंचों के सात अवगाहनास्थानों में जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। इनमें गर्भज पर्याप्त उरपरिसरों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन मनुष्यक्षेत्रबहिर्वीपवर्ती गर्भज सर्मों की अपेक्षा जानना चाहिए। [प्र.] भगवन् ! अब भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जानने की जिज्ञासा है ? [उ.] गौतम ! सामान्य से भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व की है। [प्र.] भगवन् ! सम्मूछिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण क्या है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की अवगाहना है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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