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________________ २५६ उक्कोसेणं अंगु० असं० । अनुयोगद्वारसूत्र पज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं छ गाउयाई । उरपरिसप्पथलयरपंचिंदियाणं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगु० असं० उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगु० असंखे० उक्कोसेणं जोयणपुहत्तं । अपजत्तयाणं जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं अंगुल० असं० । पज्जत्तयाणं जह० अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं जोयणपुहत्तं । गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयर० जह० अंगु० असं० उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । अपज्जत्तयाणं जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं अंगु० असं० । पज्जत्तयाणं जह० अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । भुयपरिसप्पथलयराणं पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असंखे० उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । सम्मुच्छिमभुय० जाव जह० अंगु० असं० उक्को० धणुपुहत्तं । अपज्जत्तगसम्मुच्छिमभुय० जाव पुच्छा, गो० ! जह० अंग० असं०, उक्को० अंगु० अ० । पज्जत्तयाणं जह० अंगु० संखे०, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । गब्भवक्कंतियभुय० जाव पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । अपज्जत्तयाणं जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं अंगु० असं० । पज्जत्तयगब्भवक्कंतिय० जाव पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असंखे०, उक्को० गाउयपुहत्तं । [३५१-३ प्र.] भगवन् ! चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के विषय में जिज्ञासा है ? [३५१-३ उ.] गौतम ! सामान्य रूप में (चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की) जघन्य अवगाहना अंगुल असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट छह गव्यूति की है । [प्र.] सम्मूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतिपृथक्त्व (दो से नौ गव्यूति) प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूर्च्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की कितनी शरीरावगाहना है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतिपृथक्त्व की है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की कितनी अवगाहना है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह गव्यूति प्रमाण शरीरावगाहना है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की कितनी शरीरावगाहना है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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