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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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[उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य शरीरावगाहना का प्रमाण अंगुल का असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व
(५) एत्थ संगहणिगाहाओ भवति । तं जहा
जोयणसहस्स गाउयपुहत्तं तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मुच्छिम होइ उच्चत्तं ॥ १०१॥ जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं ।
गाउयपुहत्त भुयगे पक्खीसु भवे धणुपुहत्तं ॥ १०२॥ [३५१-५] उक्त समग्र कथन की संग्राहक गाथाएं इस प्रकार हैं
सम्मूछिम जलचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचर की गव्यूतिपृथक्त्व, उरपरिसर्पस्थलचर की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसर्पस्थलचर की एवं खेचरतिर्यंचयपंचेन्द्रिय की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। १०१
गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में से जलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचरों की छह गव्यूति उरपरिसर्पस्थलचरों की एक हजार योजन, भुजपरिसर्पस्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व और पक्षियों (खेचरों) की धनुषंपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट शरीरावगाहना जानना चाहिए। १०२
विवेचन– उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। इसके साथ ही एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त के समस्त तिर्यंचगति के जीवों की अवगाहना का वर्णन समाप्त हुआ।
उपयुक्त कथन को निम्नलिखित प्रारूप द्वारा सुगमता से समझा जा सकता है
अवगाहना
नाम
जघन्य अवगाहना
उत्कृष्ट अवगाहना
क्रम
अंगु. के असंख्यातवें भाग
एक हजार योजन प्रमाण
१. सामान्य पंचेन्द्रिय जलचर १. सामान्य जलचर २. सम्मूच्छिम जलचर ३. अपर्याप्त जलचर ४. पर्याप्त जलचर
सामान्य गर्भज ६. अपर्याप्त गर्भज ७. पर्याप्त गर्भज
अंगु. के असं. भाग अंगु. के असंख्या. भाग अंगु. के असंख्या. भाग अंगु. के असंख्या. भाग अंगु. के असंख्या. भाग अंगु. के असंख्या. भाग अंगु. के असंख्या. भाग
एक हजार योजन एक हजार योजन अंगुल के असंख्यातवें भाग एक हजार योजन एक हजार योजन अंगुल के असंख्यातवें भाग एक हजार योजन प्रमाण