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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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भवधारणीय शरीरावगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन रनि तथा छह अंगुलप्रमाण है।
दूसरी उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, अढ़ाई रनि-दो रत्नि और बारह अंगुल है।
(३) सक्करप्पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? . गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा भवधारणिज्जा य १ उत्तरवेउव्विया य २ ।
तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाओ रयणीओ य ।।
तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेजइभाग, उक्कोसेणं एक्कत्तीसं धणूई रयणी य ।
[३४७-३ प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही है ?
[३४७-३ उ.] गौतम ! उनकी अवगाहना का प्रतिपादन दो प्रकार से किया है। यथा १. भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय । उनमें से भवधारणीय अवगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष दो रत्नि और बारह अंगुल प्रमाण है।
उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष और एक रत्लि है। (४) वालुयपभापुढवीए णेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—भवधारणिज्जा य १ उत्तरवेउव्विया य २ ।
तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई रयणी य ।
तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेजतिभागं, उक्कोसेणं बासळिं धणूई दो रयणीओ य ।
[३४७-४ प्र.] भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी बड़ी प्रतिपादन की गई है ?
[३४७-४ उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है। यथा—१. भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय । इन दोनों में से प्रथम भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष तथा एक रत्नि प्रमाण है।
उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रनि प्रमाण
(५) एवं सव्वासिं पुढवीणं पुच्छा भाणियव्वा—पंकप्पभाए भवधारणिजा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्कोसेणं बासष्टुिं धणूई दो रयणीओ य, उत्तरवेउव्विया जहन्नेणं अंगुलस्स खेजइभागं उक्कोसेणं पणुवीसं धणुसयं ।
धूमप्पभाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं पणुवीसं धणुसयं, उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं उक्कोसेणं अड्डाइज्जाइं धणुसयाई ।