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अनुयोगद्वारसूत्र तमाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्कोसेणं अड्डाइजाइं धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं उक्कोसेणं पंच धणुसयाई । __ [३४७] इसी प्रकार समस्त पृथ्वियों के विषय में अवगाहना सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए। उत्तर इस प्रकार
... पंकप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रनि प्रमाण है।
उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है।
धूमप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य (शरीरावगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ (दो सौ पचास) धनुष प्रमाण है।
तमःप्रभापृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष है।
(६) तमतमापुढविनेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता । तं जहा—भवधारणिज्जा य १ उत्तरवेउव्विया य २ ।
तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं पंच धणुसयाई ।
तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं धणुसहस्सं । [३४७-६ प्र.] भगवन् ! तमस्तम:पृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना कितनी बड़ी निरूपित की गई है ? [३४७-६ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार की कही है—१.भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय रूप।
उनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है तथा उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार धनुष प्रमाण है। ____ विवेचन— प्रस्तुत सूत्र में विशेषापेक्षया सातों नरकपृथ्वियों के नैरयिकों की भवधारणीय एवं उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना की प्ररूपणा की गई है।
सातों पृथ्वियों में बताई गई उत्कृष्ट भवधारणीय अवगाहना उन-उन पृथ्वियों के अन्तिम प्रस्तरों में होती है। भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना से उत्तरवैक्रिय अवगाहना का प्रमाण सर्वत्र दूना जानना चाहिए।
दिगम्बर साहित्य में भी नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना का प्रमाण यहां बतलाए गए प्रमाण के समान ही है। पृथक्-पृथक् प्रस्तरों की अपेक्षा किया गया पृथक्-पृथक् निर्देश इस प्रकार है
प्रस्तर प्रथम पृ. द्वि. पृथ्वी तृ. पृथ्वी चतु. पृथ्वी पंचम पृथ्वी षष्ठ पृथ्वी सप्तम पृथ्वी __संख्या ध.र.अं. * ध.र.अं. ध.र.अं. ध.र.अं. ध.र.अं. ध.र.अं. ध.र.अं १. ०,३,
० ८ ,२,२ २/११ १७,१,१० २/३ ३५,२,२० ४.७ ७५,०,० १६६,२,१६ ५००,०,०' आधार—तिलोयपण्णत्ति २/२१७-२७०, राजवार्तिक ३/३ * संकेत-ध. धनुष, र- रलि (हाथ), अं. अंगुल (गणना-१ धनुष= ४ हाथ, = २४ अंगुल)