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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २३७ उद्यान (अनेक प्रकार के पुष्प-फलों वाले वृक्षों से युक्त बाग), कानन (अनेक वृक्षों से युक्त नगर का निकटवर्ती प्रदेश), वन (जिसमें एक ही जाति के वृक्ष हों), वनखंड (जिसमें अनेक जाति के उत्तम वृक्ष हों), वनराजि (जिसमें एक या अनेक जाति के वृक्षों की श्रेणियां हों), देवकुल (यक्षायतन आदि), सभा, प्रपा (प्याऊ), स्तूप, खातिका (खाई), परिखा (नीचे संकड़ी और ऊपर विस्तीर्ण खाई), प्राकार (परकोटा), अट्टालक (परकोटे पर बना आश्रयविशेष—अटारी), चरिका (खाई और प्राकार के बीच बना आठ हाथ चौड़ा मार्ग), द्वार, गोपुर (नगर में प्रवेश करने का मुख्य द्वार), तोरण, प्रासाद (राजभवन), घर (सामान्य जनों के निवास स्थान), शरण (घास-फूस से बनी झोंपड़ी), लयन (पर्वत में बनाया गया निवासस्थान), आपण (बाजार), शृंगाटक (सिंघाड़े के आकार का त्रिकोण मार्ग), त्रिक (तिराहा), चतुष्क (चौराहा), चत्वर (चौगान, चौक, मैदान), चतुर्मुख (चार द्वार वाला देवालय आदि),महापथ (राजमार्ग), पथ (गलियां), शकट (गाड़ी, बैलगाड़ी), रथ, यान (साधारण गाड़ी), युग्य (डोलीपालखी), गिल्लि (हाथी पर रखने का हौदा), थिल्लि (यान-विशेष, बहली), शिविका (पालखी), स्यंदमानिका (इक्का), लोही (लोहे की छोटी कड़ाही), लोहकटाह (लोहे की बड़ी कड़ाही कड़ाहा), कुडछी (चमचा), आसन (बैठने के पाट आदि), शयन (शय्या), स्तम्भ, भांड (पात्र आदि) मिट्टी, कांसे आदि से बने भाजन गृहोपयोगी बर्तन, उपकरण आदि वस्तुओं एवं योजन आदि का माप किया जाता है। विवेचन- सूत्रोक्त भवनादि का निर्माण मनुष्य अपने समय को ध्यान में रखकर करते हैं। इसीलिए सूत्र में मनुष्यों द्वारा बनाई गई एवं अशाश्वत वस्तुओं की लम्बाई-चौड़ाई-ऊंचाई आदि का माप आत्मांगुल से किये जाने का उल्लेख किया गया है। 'अज्जकालिगाई' अर्थात् आज-कल शब्द वर्तमान का बोधक है। अर्थात् जिस काल में जितनी ऊंचाई, चौड़ाई आदि वाले मनुष्य हों, उनकी अपेक्षा ही आत्मांगुल का प्रमाण निर्धारित होता है। आत्मांगुल का प्रयोजन बतलाने के अनन्तर अब उसके अवान्तर भेदों का निर्देश करते हैं। आत्मांगुल के भेद ३३७. से समासओ तिविहे पण्णत्ते । तं जहासूइअंगुले १ पयरंगुले २ घणंगुले ३ । अंगुलायता एगपदेसिया सेढी सूइअंगुले १ सूयी सूयीए गुणिया पयरंगुले २ पयरं सूईए गुणितं घणंगुले ३ । [३३७] आत्मांगुल सामान्य से तीन प्रकार का है—१. सूच्यंगुल, २. प्रतरांगुल, ३. घनांगुल। १. एक अंगुल लम्बी और एक प्रदेश चौड़ी आकाश-प्रदेशों की श्रेणि-पंक्ति का नाम सूच्यंगुल है। २. सूच्यंगुल को सूच्यंगुल से गुणा करने पर प्रतरांगुल बनता है। ३. प्रतरांगुल को सूच्यंगुल से गुणित करने पर घनांगुल होता है। विवेचन– सूत्र में आत्मांगुल के भेदत्रिक का वर्णन किया है। सूच्यंगुल की निष्पन्नता में श्रेणी शब्द आया है। इस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। यहां क्षेत्रप्रमाण के निरूपण का प्रसंग होने से श्रेणि शब्द का अर्थ 'आकाशप्रदेशों की पंक्ति' ग्रहण किया गया है। शास्त्र में श्रेणि के सात प्रकार कहे गये हैं—१. ऋजुआयता, २. एकतोवक्रा, ३. द्वितोवक्रा, ४. एकत:खहा, ५.
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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