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________________ २३६ अनुयोगद्वारसूत्र एक सौ आठ अंगुल ऊंचाई वाला पुरुष प्रमाणपुरुष कहलाता है। दूसरे प्रकार से भी प्रमाणयुक्त पुरुष की परीक्षा करने के कुछ नियम बताये हैं—एक बड़ी जलकुंडिका को जल से परिपूर्ण भरकर उसमें किसी पुरुष को बैठाने पर जब द्रोणप्रमाण जल उससे छलक कर बाहर निकल जाये तो वह पुरुष मानयुक्त माना जाता है और उस पुरुष की द्रोणिकपुरुष यह संज्ञा होती है। अथवा द्रोणपरिमाण न्यून जल से कुंडिका में पुरुष के प्रवेश करने पर यदि वह कुंडिका पूर्ण रूप से किनारों तक भर जाती है तो ऐसा पुरुष भी मानयुक्त माना जाता है। तीसरी परीक्षा यह है कि तराजू से तौलने पर जो पुरुष अर्धभारप्रमाण वजनवाला हो, वह पुरुष उन्मान से प्रमाणयुक्त माना जाता है। ऐसे पुरुष लोक में उत्तम माने जाते हैं। ___ ये उत्तम पुरुष प्रमाण, मान और उन्मान से संपन्न होने के साथ ही शरीर में पाये जाने वाले स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि शुभ लक्षणों तथा तिल, मसा आदि व्यंजनों से युक्त होते हैं। इनका जन्म लोकमान्य कुलों में होता है। वे उच्चगोत्रकर्म के विपाकोदय के कारण लोक में आदर-संमान के पात्र माने जाते हैं, आज्ञा, ऐश्वर्य, संपत्ति से संपन्नसमृद्ध होते हैं। उपर्युक्त माप-तौल से हीन पुरुषों की गणना मध्यम अथवा जघन्य पुरुषों में की जाती है। सूत्रोक्त उत्तम पुरुष के मानदंड को हम प्रत्यक्ष भी देखते हैं। सेना और सेना के अधिकारियों का चयन करते समय व्यक्ति की ऊंचाई, शारीरिक क्षमता, साहस आदि की परीक्षा करने पर निर्धारित मान में उत्तीर्ण व्यक्ति का चयन कर लिया जाता है। ___इस प्रकार से आत्मांगुल की व्याख्या करने के पश्चात् उसका उपयोग कहां और किस के नापने में किया जाता है, इसे स्पष्ट करते हैं। आत्मांगुल का प्रयोजन ३३६. एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं ? एतेणं आयंगुलप्पमाणे णं जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड़दह-नदी-तलाग-वावी-पुक्खरिणि-दीहिया-गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुजाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइय-परिहाओ पागारअट्टालग-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-पासाद-घर-सरण-लेण-आवण-सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चरचउमुह-महापह-पहा सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणिय-लोही-लोहकडाहकडुच्छुय-आसण-सतण-खंभ-भंड-मत्तोवगरणमादीणि अजकालिगाइं च जोयणाई मविजंति । [३३६ प्र.] भगवन् ! इस आत्मांगुलप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? [३३६ उ.] आयुष्मन् ! इस आत्मांगुलप्रमाण से कुआ, तडाग (तालाब), द्रह (जलाशय), वापी (चतुष्कोण वाली बावड़ी), पुष्करिणी (कमलयुक्त जलाशय), दीर्घिका (लम्बी-चौड़ी बावड़ी), गुंजालिका (वक्राकार बावड़ी), सर (अपने-आप बना जलाशय—झील), सरपंक्ति (श्रेणी—पंक्ति रूप में स्थित जलाशय), सर-सरपंक्ति (नालियों द्वारा सम्बन्धित जलाशयों की पंक्ति), विलपंक्ति (छोटे मुख वाले कूपों की पंक्ति—कुंडियां), आराम (बगीचा),
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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