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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २३५ होंति पुण अहियपुरिसा अट्ठसतं अंगुलाण उव्विद्धा । छण्णउति अहमपुरिसा चउरुत्तर मज्झिमिल्ला उ ॥ ९७॥ हीणा वा अहिया वा जे खलु सर-सत्त सारपरिहीणा । ते उत्तमपुरिसाणं अवसा पेसत्तणमुवेंति ॥ ९८॥ [३३४ प्र.] भगवन् ! आत्मांगुल किसे कहते हैं ? [३३४ उ.] आयुष्मन् ! जिस काल में जो मनुष्य होते हैं (उस काल की अपेक्षा) उनके अंगुल को आत्मांगुल कहते हैं। उनके अपने-अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है। नौ मुख प्रमाण वाला (अर्थात् एक सौ आठ आत्मांगुल की ऊंचाई वाला) पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और अर्धभारप्रमाण तौल वाला पुरुष उन्मानयुक्त होता है। जो पुरुष मान-उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा (शंख आदि शारीरिक शुभ) लक्षणों एवं (तिल मसा आदि) व्यंजनों से और (उदारता, करुणा आदि) मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं (उग्र, भोग आदि) उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे (चक्रवर्ती आदि) पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना चाहिए। ९६ ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं। अधम पुरुष छियानवै अंगुल और मध्यम पुरुष एक सौ चार अंगुल ऊंचे होते हैं । ९७ ।। ये हीन (छियानवै अंगुल की ऊंचाई वाले) अथवा उससे अधिक ऊंचाई वाले (मध्यम पुरुष) जनोपादेय एवं प्रशंसनीय स्वर से, सत्त्व से—आत्मिक-मानसिक शक्ति से तथा सार से अर्थात् शारीरिक क्षमता, सहनशीलता, पुरुषार्थ आदि से हीन और उत्तम पुरुषों के दास होते हैं । ९८ ____३३५. एतेणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्ख-मुसले, दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाई जोयणं । __[३३५] इस आत्मांगुल से छह अंगुल का एक पाद होता है। दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति की एक रनि और दो रत्नि की एक कुक्षि होती है। दो कुक्षि का एक दंड, धनुष, युग, नालिका अक्ष और मूसल जानना चाहिए। दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। विवेचन— इन दो सूत्रों में अंगुल के तीन प्रकारों में से प्रथम आत्मांगुल के स्वरूप आदि का वर्णन किया आत्मांगुल में 'आत्मा' शब्द 'स्व' अर्थ का सूचक है। अतएव अपना जो अंगुल उसे आत्मांगुल कहते हैं। यह कालादि के भेद से अनवस्थित प्रमाण वाला है। इसका कारण यह है कि उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के भेद से मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई आदि बढ़ती-घटती रहती है। अतएव जिस काल में जो पुरुष होते हैं, उस काल में उनका अंगुल आत्मांगुल कहलाता है। इसी अपेक्षा से आत्मांगुल को अनियत प्रमाण वाला कहा है। आत्मांगुल से नापने पर बारह अंगुल का जितना प्रमाण हो उसकी 'मुख' यह संज्ञा है। ऐसे नौ मुखों अर्थात्
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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