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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण गणिमे जण्णं गणिज्जति ? तं जहा— एक्को दसगं सतं सहस्सं दससहस्साइं सतसहस्सं दससतसहस्साइं कोडी । २२९ [३२६ प्र.] भगवन् ! गणिमप्रमाण क्या है ? [३२६ उ.] आयुष्मन् ! जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण कहते हैं । वह इस प्रकार है— एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख करोड़ इत्यादि । ३२७. एतेणं गणिमप्पमाणेणं किं पओयणं ? एतेणं गणिमप्पमाणेणं भितग-भित्ति-भत्त-वेयण-आय-व्वयनिव्विसंसियाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवति । से तं गणिमे । [३२७ प्र.] भगवन् ! इस गणिमप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? [३२७ उ.] आयुष्मन् ! इस गणिमप्रमाण में भृत्य — नौकर, कर्मचारी आदि की वृत्ति, भोजन, वेतन के आय-व्यय से सम्बन्धित (रुपया, पैसा आदि) द्रव्यों के प्रमाण की निष्पत्ति होती है । यह गणिमप्रमाण का स्वरूप है। दव्वाणं विवेचन — माप, तौल और नापने से जिन वस्तुओं के परिमाण का निश्चय नहीं किया जा सकता, उनको जानने के लिए गणिम ( गणना) प्रमाण का उपयोग होता है। जैसे आम के वृक्ष को और आम के फल को आम कहते हैं, वैसे ही गणिमप्रमाण के द्वारा जिस वस्तु की गणना होती है और जिस साधन द्वारा उस वस्तु की गणना की जाती है, दोनों गणिम कहलाते हैं । इस अपेक्षा से गणिम शब्द की व्युत्पत्ति के दो रूप हैं— कर्मसाधन और करणसाधन । 'गण्यते संख्यायते यत् तत् गणिमम्' जिसकी गणना की जाती है, वह मणिम है, इस प्रकार से कर्मसाधन में गणिम की व्युत्पत्ति की जाती है तब रुपया आदि गणनीय वस्तुएं गणिम शब्द की वाच्यार्थ होती हैं और 'गण्यते संख्यायते वस्त्वनेनेति गणिमम्' जिसके द्वारा वस्तु गिनी जाती है वह गणिम है, इस प्रकार करणसाधन व्युत्पत्ति करने पर रुपया आदि जिस संख्या के द्वारा गिने जाते हैं, वह एक, दो, तीन, दस, सौ आदि संख्या गणिम शब्द की वाच्यार्थ होती है। इस प्रकार से गणिम शब्द की कर्म और करण साधन में व्युत्पत्ति संभव होने पर भी सूत्र में गणिम शब्द मुख्य रूप से कर्मसाधन में ग्रहण किया है और गणनीय वस्तुएं जिनके द्वारा गिनी जाती है, उसके लिए एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख करोड़ आदि संख्या का संकेत किया है। सूत्र में गणना के लिए जिस क्रम से संख्याओं का उल्लेख किया है, वे सब पूर्व - पूर्व से दस गुनी हैं। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि विश्व में आज तो दसमलवप्रणाली प्रचलित है, उसका प्रयोग भारत में प्राचीन समय से होता चला आ रहा था। प्राचीन भारत इस प्रणाली का प्रस्तावक रहा और आर्थिक क्षेत्र की उपलब्धियों का मानदंड यही प्रणाली थी । यहां गणना के लिए करोड़ पर्यन्त की संख्या का संकेत किया है। इससे आगे की संख्याओं के नाम इस प्रकार हैं— दस करोड़, अरब, दस अरब, खरब, दस खरब, नील, दस नील, शंख, दस शंख, पद्म, दस पद्म इत्यादि और यह सर्वगणनीय संख्या गणनाप्रमाण का विषय १९४ अंक प्रमाण है। जिसका संकेत काल प्रमाण के
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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