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________________ २२८ अनुयोगद्वारसूत्र (चटाई), पट (वस्त्र), भींत (दीवाल), परिक्षेप (दीवाल की परिधि—घेरा) अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लंबाई-चौड़ाई, गहराई और ऊंचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है। इस प्रकार से अवमानप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिए। विवेचन- यहां अवमानप्रमाण की व्याख्या की गई है। जीवित रहने के लिए मनुष्य गेहूं आदि धान्य, जल आदि तरल पदार्थ और स्वास्थ्यरक्षा के लिए औषध आदि वस्तुएं उपयोग में लाता है। उनके परिमाण को जानने के लिए तो धान्यमान आदि प्रमाण काम में लाये जाते हैं। किन्तु सुरक्षा के लिए वह मकान आदि का, नगर की रक्षा के लिए खात, परिखा आदि का निर्माण करता है। उनकी लंबाई, चौड़ाई आदि का परिज्ञान करने के लिए अवमानप्रमाण का उपयोग किया जाता है। आगे कहे जाने वाले क्षेत्रप्रमाण के द्वारा भी क्षेत्र की लंबाई-चौड़ाई का नाप किया जाता है और इस अवमानप्रमाण का भी यही प्रयोजन है। लेकिन दोनों में यह अंतर है कि क्षेत्रप्रमाण के द्वारा शाश्वत, अकृत्रिम, प्राकृतिक क्षेत्र का और अवमानप्रमाण द्वारा मनुष्य द्वारा निर्मित घर, खेत आदि की सीमा का निर्धारण किया जाता यहां अवमान शब्द कर्म और करण इन दोनों रूपों में व्यवहत हुआ है। जब 'अवमीयते यत् तत् अवमानम्' इस प्रकार की कर्मसाधन रूप व्युत्पत्ति करते हैं तब उसके वाच्य गृहभूमि, खेत आदि और 'अवमीयते अनेन इति अवमानम्' ऐसी करणसाधन व्युत्पत्ति करने पर नापने के माध्यम दंड आदि अवमान शब्द के वाच्य होते हैं। __यद्यपि दंड, धनुष आदि मूसल पर्यन्त नामों का प्रमाण चार हाथ है, फिर भी सूत्र में इनका पृथक्-पृथक् निर्देश कारणविशेष से किया है। वास्तु-गृहभूमि को नापने में हाथ काम में लाया जाता है, जैसे यह घर इतने हाथ लंबा-चौड़ा है। क्षेत्र खेत दंड (चार हाथ लंबे बांस) द्वारा नापा जाता है। मार्ग को नापने के लिए धनुष प्रमाणभूत गिना जाता है। अर्थात् मार्ग की लंबाई आदि के प्रमाण का बोध धनुष से होता है। खात, कुआ आदि की गहराई का प्रमाण चार हाथ जितनी लंबी नालिका (लाठी) से जाना जाता है। उक्त वस्तुओं को नापने के लिए लोक में इसी प्रकार की रूढ़ि है। इसीलिए वास्तु-गृहभूमि आदि नापे जाने वाले पदार्थों में भेद होने से उनके नाप के लिए दंड आदि का पृथक्-पृथक् निर्देश किया गया है। तिलोयपण्णत्ति (१/१०२-१०६) में भी क्षेत्र नापने के प्रमाणों का इसी प्रकार से कथन किया गया है। किन्तु इतना विशेष है कि वहां 'किष्कु' नाम अधिक है तथा उसका प्रमाण दो हाथ का बताया गया है। तत्रस्थ वर्णन का क्रम इस प्रकार है—छह अंगुल का एक पाद, दो पाद की एक वितस्ति (वालिश्त), दो वितस्ति का एक हाथ, दो हाथ का एक किष्कु, दो किष्कु का एक दंड-युग-धनुष, मूसल-नाली, दो हजार धनुष का एक कोस और चार कोस का एक योजन होता है। इस प्रकार अन्न, वस्त्र, आवास आदि के परिमाण के बोधक प्रमाणों का वर्णन करने के पश्चात् अब अर्थशास्त्र से सम्बन्धित प्रमाण का निरूपण किया जाता है। गणिमप्रमाण ३२६. से किं तं गणिमे ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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