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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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.. अर्धकर्ष, कर्ष आदि प्राचीन मागधमान में तोलने के बांटों के नाम हैं।
तत्त्वार्थराजवार्तिक' में तोलने के बांटों और उनके प्रमाण का निर्देश इस प्रकार किया गया है
चार मेंहदी के फलों का एक श्वेत सर्षप फल, सोलह सर्षप फल का एक धान्यमाष फल, दो धान्यमाष फल का एक गुंजाफल, दो गुंजाफल का एक रूप्यमाषफल, सोलह रूप्यमाषफल का एक धरण, अढ़ाई धरण का एक सवर्ण या कंस, चार सुवर्ण या चार कंस का एक पल, सौ पल की एक तुला, तीन तुला का एक कुडव, चार कुडव का एक प्रस्थ (सेर), चार प्रस्थ का एक आढक, चार आढक का एक द्रोण, सोलह द्रोण की एक खारी और बीस खारी की एक बाह होती है। अवमानप्रमाण
३२४. से किं तं ओमाणे ?
ओमाणे जण्णं ओमिणिजति । तं जहा—हत्थेण वा दंडेण वा धणुएण वा जुगेण वा णालियाए वा अक्खेण वा मुसलेण वा ।
दंडं धणू जुगं णालिया य अक्ख मुसलं च चउहत्थं । दसनालियं च रज्जु वियाण ओमाणसण्णाए ॥ ९३॥ वत्थुम्मि हत्थमिजं खित्ते दंडं धणुं च पंथम्मि ।
खायं च नालियाए वियाण ओमाणसण्णाए ॥ ९४॥ [३२४ प्र.] भगवन् ! अवमान (प्रमाण) क्या है ?
[३२४ उ.] आयुष्मन् ! जिसके द्वारा अवमान (नाप) किया जाये अथवा जिसका अवमान (नाप) किया जाये, उसे अवमानप्रमाण कहते हैं। वह इस प्रकार—हाथ से, दंड से, धनुष से, युग से, नालिका से, अक्ष से अथवा मूसल से नापा जाता है।
दंड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मूसल चार हाथ प्रमाण होते हैं । दस नालिका की एक रज्जू होती है। ये सभी अवमान कहलाते हैं। ९३ - वास्तु-गृहभूमि को हाथ द्वारा, क्षेत्र खेत को दंड द्वारा, मार्ग रास्ते को धनुष द्वारा और खाई कुआ आदि को नालिका द्वारा नापा जाता है। इन सबको 'अवमान' इस नाम से जानना चाहिए। ९५
३२५. एतेणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ?
एतेणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-करगचित-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दवाणं ओमाणप्पमाणनिव्वत्तिलक्खणं भवति । से तं ओमाणं ।
[३२५ प्र.] भगवन् ! इस अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
[३२५ उ.] आयुष्मन् ! इस अवमानप्रमाण से खात (खाई), कुआ आदि, ईंट, पत्थर आदि से निर्मित प्रासाद-भवन, पीठ (चबूतरा) आदि, क्रकचित (करवत—आरी आदि से विदारित, खंडित काष्ठ) आदि, कट
१. तत्त्वार्थराजवार्तिक ३/३८