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उन्मानप्रमाण
अनुयोगद्वारसूत्र
३२२. से किं तं उम्माणे ?
उम्माणे जण्णं उम्मिणिज्जइ । तं जहा — अद्धकरिसो करिसो अद्धपलं पलं अद्धतुला तुला अद्धभारो भारो । दो अद्धकरिसा करिसो, दो करिसा अद्धपलं, दो अद्धपलाई पलं, पंचुत्तरपलसतिया पंचपलसइया तुला, दस तुलाओ अद्धभारो, वीसं तुलाओ भारो ।
[ ३२२ प्र.] भगवन् ! उन्मानप्रमाण का क्या स्वरूप है ?
[३२२ उ.] आयुष्मन् ! जिसका उन्मान किया जाये अथवा जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है (जो वस्तु तुलती है और जिस तराजू, कांटा आदि साधनों से तोली जाती है), , उन्हें उन्मानप्रमाण कहते हैं। उसका प्रमाण निम्न प्रकार है—
१. अर्धकर्ष, २. कर्ष, ३. अर्धपल, ४. पल, ५. अर्धतुला, ६. तुला, ७. अर्धभार और ८. भार ।
इन प्रमाणों की निष्पत्ति इस प्रकार होती है— दो अर्धकर्षों का एक कर्ष, दो कर्षों का एक अर्धपल, दो अर्धपलों का एक पल, एक सौ पांच अथवा पांच सौ पलों की एक तुला, दस तुला का एक अर्धभार और बीस तुला- दो अर्धभारों का एक भार होता है।
३२३. एएणं उम्माणपमाणेणं किं पयोयणं ?
एतेणं उम्माणपमाणेणं पत्त- अगलु-तगर- चोयय - कुंकुम - खंड - गुल-मच्छंडियादीणं दव्वाणं उम्माणपमाणणिव्वत्तिलक्खणं भवति । से तं उम्माणपमाणे ।
[ ३२३ प्र.] भगवन् ! इस उन्मानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
[३२३ उ.] आयुष्मन् ! इस उन्मानप्रमाण से पत्र, अगर, तगर (गंध द्रव्य विशेष ) ४ चोयक - (चोक औषधि विशेष), ५. कुंकम, ६. खांड (शक्कर), ७. गुड़, ८. मिश्री आदि द्रव्यों के परिमाण का परिज्ञान होता है। इस प्रकार उन्मानप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिए ।
विवेचन —- इन दो सूत्रों में विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के दूसरे भेद का वर्णन किया है।
धान्यमान और रसमान इन दो प्रमाणों के द्वारा प्रायः सभी स्थूल पदार्थों का परिमाण जाना जा सकता है। फिर भी कुछ ऐसे स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मस्थूल पदार्थ हैं, जिनका निश्चित प्रमाण उक्त दो मानों से निर्धारित नहीं हो पाता है । इसीलिए उन पदार्थों के सही परिमाण को जानने के लिए उन्मानप्रमाण का उपयोग होता है।
उन्मान शब्द की व्युत्पत्ति भी कर्मसाधन और करणसाधन — दोनों पक्षों की अपेक्षा से की जा सकती है। इसीलिए सूत्र में तेजपत्र आदि एवं अर्धकर्ष आदि भारों का उल्लेख किया है। तराजू में रखकर जो वस्तु तोली जाती है—' यत् उन्मीयते तत् उन्मानम्' इस प्रकार से कर्मसाधनपक्ष में जब उन्मान की व्युत्पत्ति करते हैं तब तेजपत्र आदि उन्मान रूप होते हैं और 'उन्मीयते अनेन इति उन्मानम्' जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है—तोला जाता है, वह उन्मान है, इस करणमूलक व्युत्पत्ति से अर्धकर्ष आदि उन्मान रूप हो जाते हैं।
अर्धकर्ष तोलने का सबसे कम भार का बांट है । आजकल व्यवहार में कर्ष को तोला भी कहा जाता है। क्योंकि मन, सेर, छटांक आदि तोलने के बांट बनाने का आधार यही है ।