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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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(खास—यह बकरी आदि के बालों, सूत या सूतली की बनी हुई होती है और इसमें अनाज भरकर पीठ पर लाद कर लाते हैं, कहीं-कहीं इसे गुण, गोन, कोथला या बोरा भी कहते हैं), अलिंद (अनाज को भरकर लाने का बर्तन, पात्र, डलिया आदि) और अपचारि (बंडा, खंती, धान्य को सुरक्षित रखने के लिए जमीन के अन्दर या बाहर बनायी गयी कोठी, आज की भाषा में 'सायलो') में रखे धान्य के प्रमाण का परिज्ञान होता है। इसे ही धान्यमानप्रमाण कहते
हैं।
विवेचन- धान्यविषयक मान (माप) धान्यमानप्रमाण कहलाता है। वह असति, प्रसृति आदि रूप है। असति यह धान्यादि ठोस वस्तुओं के मापने की आद्य इकाई है। टीकाकार ने इसे अवाड्मुख हथेली रूप कहा है। आगे के प्रसृति आदि मापों की उत्पत्ति का मूल यह असति है, इसी से उन सब मापों की उत्पत्ति हुई है।
यद्यपि अधोमुख रूप से व्यवस्थापित हथेली का नाम असति है लेकिन यहां मानप्रमाण के प्रसंग में यह अर्थ लिया जायेगा कि हथेली को अधोमुख स्थापित करके मुट्ठी में जितना धान्य समा जाये, तत्परिमित धान्य असति है।
असति के अनन्तर प्रसृति का क्रम है। इसका आकार नाव की आकृति जैसा होता है। अर्थात् परस्पर जुड़ी हुई नाव के आकार में फैली हुई हथेलियां (खोवा) एक प्रसृति है। इसके बाद के मानों का स्वरूप सूत्र में ही स्पष्ट कर दिया गया है।
धान्यमानप्रमाण के लिए उल्लिखित संज्ञायें मागधमान—मगधदेश में प्रसिद्ध मापों की बोधक हैं।
प्राचीन काल में मागधमान और कलिंगमान, यह दो तरह के माप-तौल प्रचलित थे। यह दोनों नाम प्रभावशाली राज्यशासन के कारण प्रचलित हुए थे। इनमें भी शताब्दियों तक मगध प्रशासनिक दृष्टि से समस्त भारत देश का और मुख्य रूप से उत्तरांचल भारत का केन्द्र होने से मगध के अतिरिक्त भारत के अन्यान्य प्रदेशों में भी मागधमान का अधिक प्रचलन और मान्यता थी।
आयुर्वेदीय ग्रन्थों में माप-तौल के लिए मागधमान को आधार बनाकर मान-परिमाण की चर्चा इस प्रकार की
तीस परमाणुओं का एक त्रसरेणु होता है। छह त्रसरेणुओं की एक मरीचि, छह मरीचि की एक राई, तीन राई का एक सरसों, आठ सरसों का एक यव (जौ), चार जौ की एक रत्ती, छह रत्ती का एक माशा, चार माशे का एक शाण, दो शाण का एक कोल, दो कोल का एक कर्ष, दो कर्ष का एक अर्धपल, दो अर्धपल का एक पल, दो पल की एक प्रसृति, दो प्रसृतियों की एक अंजलि, दो अंजलि की एक मानिको, दो मानिका का एक प्रस्थ, चार प्रस्थ का एक आढक, चार आढक का एक द्रोण, दो द्रोणों का एक सूर्य, दो सूर्य की एक द्रोणी, चार द्रोणी की एक खारी होती है तथा दो हजार पल का एक भार और सौ पल की एक तुला होती है।
त्रसरेणुर्बुधैः प्रोक्तस्त्रिशता परमाणुभिः । त्रसरेणुस्तु पर्यायनाम्ना वंशी निगद्यते ॥ जालान्तर्गते भानौ यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः । तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणः स उच्यते ॥ षड्वंशीभिर्मरीची स्यात्ताभिः षड्भिस्तु राजिका । तिसभी राजकाभिश्च सर्षपः प्रोच्यते बुधैः ॥
यवोऽष्टसर्षपैः प्रोक्तो गुजा स्याच्च चतुष्टयम् । षभिस्तु रक्तिकाभिस्स्यान्मषको हेमधान्यकौः ॥ माषैश्चतुर्भिः शाणः स्यातहरणः स निगद्यते । टंकः स एव कथितस्तद्वयं कोल उच्यते ॥ क्षुद्रको वटकश्चैव द्रंक्षण स निगद्यते । कोलद्वयं च कर्ष: स्यात् स प्रोक्तः पाणिमानिका ॥