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अनुयोगद्वारसूत्र
प्रतिमान-जिसके द्वारा स्वर्ण आदि पदार्थों का वजन किया जाये अथवा आगे के मानों की व्यवस्था की आद्य इकाई।
तत्त्वार्थराजवार्तिक में गणना प्रमाण की अपेक्षा उक्त पांच भेदों के अतिरिक्त तत्प्रमाण' नामक एक छठा भेद और बताया है और उसकी व्याख्या की है—मणि आदि की दीप्ति, अश्वादि की ऊंचाई आदि गुणों के द्वारा मूल्यनिर्धारण करने के लिए तत्प्रमाण का उपयोग होता है। जैसे मणि की प्रभा ऊंचाई में जहां तक जाये, उतनी ऊंचई तक का स्वर्ण का ढेर उसका मूल्य है, इत्यादि। मानप्रमाण
३१७. से किं तं माणे ? । माणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—धनमाणप्पमाणे य १ रसमाणप्पमाणे य २ । [३१७ प्र.] भगवन् ! मानप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [३१७ उ.] आयुष्मन ! मानप्रमाण दो प्रकार का है—१.धान्यमानप्रमाण और २. रसमानप्रमाण।
विवेचन- विवेचन करने की विधा के अनुसार यहां मानप्रमाण का विस्तार से वर्णन करने के लिए उसके दो भेद किये हैं। इन दोनों भेदों में से पहले धान्यमानप्रमाण का निरूपण किया जाता है। धान्यमानप्रमाण
३१८. से किं तं धण्णमाणप्पमाणे ?
धण्णमाणप्पमाणे दो असतीओ पसती, दो पसतीओ सेतिया, चत्तारि सेतियाओ कुलओ, चत्तारि कुलया पत्थो, चत्तारि पत्थया आढयं, चत्तारि आढयाई दोणो, सर्व्हि आढयाई जहन्नए कुंभे, असीतिआढयाई मज्झिमए कुंभे, आढयसतं उक्कोसए कुंभे, अट्ठआढयसतिए बाहे ।
[३१८ प्र.] भगवन् ! धान्यमानप्रमाण का क्या स्वरूप है ?
[३१८ उ.] आयुष्मन् ! (वह असति, प्रसृति आदि रूप है, अतएव) दो असति की एक प्रसृति होती है, दो प्रसृति की एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुडब, चार कुडब का एक प्रस्थ, चार प्रस्थों का एक आढक, चार आढक का एक द्रोण, साठ आढक का एक जघन्य कुंभ, अस्सी आढक का एक मध्यम कुंभ, सौ आढक का एक उत्कृष्ट कुंभ और आठ सौ आढकों का एक बाह होता है।
३१९. एएणं धण्णमाणप्पमाणेणं किं पयोयणं ?
एतेणं धण्णमाणप्पमाणेणं मुत्तोली-मुरव-इड्डर-अलिंद-अपवारिसंसियाणं धण्णाणं धण्णमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवति। से तं धण्णमाणप्पमाणे ।
[३१९ प्र.] भगवन् ! इस धान्यमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
[३१९ उ.] आयुष्मन् ! इस धान्यमानप्रमाण के द्वारा मुक्तोली (ऐसी कोठी जो खड़े मृदंग के आकार जैसी ऊपर-नीचे संकड़ी और मध्य में कुछ विस्तृत, चौड़ी होती है), मुरव (सूत का बना हुआ बड़ा बोरा, जिसे कहीं कहीं 'फट्ट' भी कहते हैं और उसमें अनाज भरकर बेचने के लिए मंडियों, बाजारों में लाया जाता है), इड्डर