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प्रमाणाधिकारनिरूपण
एक अविभागी पुद्गल परमाणु घेरता है, उसे प्रदेश तथा जो स्वयं आदि, मध्य और अन्तरूप है, ऐसे निर्विभाग (पुद्गल) द्रव्य को परमाणु कहते हैं। ऐसे एक से अधिक दो आदि यावत् अनन्त परमाणुओं के स्कन्धन-संघटन से निष्पन्न होने वाला पिंड स्कन्ध कहलाता है।
यहां प्रदेशनिष्पन्न के रूप में मूर्तरूपी पुद्गल द्रव्य को ग्रहण किया गया है। क्योंकि उसी में स्थूल रूप से पकड़ने, रखने आदि का व्यापार प्रत्यक्ष दिखलाई देता है।
जैनागमों में मूर्त और अमूर्त सभी द्रव्यों के प्रदेशों का प्रमाण इस प्रकार बतलाया है—
धर्मास्तिकाय
असंख्यात प्रदेश
अधर्मास्तिकाय
(एक) जीवास्तिकाय आकाशास्तिकाय
काल द्रव्य
पुद्गलास्तिकाय — संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश । २
विभागनिष्पन्नद्रव्यप्रमाण
असंख्यात प्रदेश
असंख्यात प्रदेश
अनन्त प्रदेश
अप्रदेशी (एक प्रदेशमात्र )
३१६. से किं तं विभागनिष्फण्णे ?
विभागनिष्फण्णे पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा – माणे १ उम्माणे २ ओमाणे ३ गणिमे ४ पडिमाणे ५ ।
१.
२.
[३१६ प्र.] भगवन् ! विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण क्या है ?
[३१६ उ.] आयुष्मन् ! विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण पांच प्रकार का है। वह इस प्रकार — १ . मानप्रमाण, २. उन्मानप्रमाण, ३. अवमानप्रमाण, ४. गणिमप्रमाण और ५. प्रतिमानप्रमाण ।
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विवेचन—– सूत्र में भेदों के माध्यम से विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण का वर्णन प्रारम्भ करने का निर्देश किया है ।
विशिष्ट अथवा विविध भाग — भंग - विकल्प - प्रकार को विभाग कहते हैं । अतएव जिस द्रव्यप्रमाण की निष्पत्ति-सिद्धि स्वगत प्रदेशों से नहीं किन्तु विभाग के द्वारा होती है, वह विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण कहलाता है। इसका तात्पर्य यह है कि धान्यादि द्रव्यों के मान आदि का स्वरूप निर्धारण स्वगत प्रदेशों से नहीं किन्तु 'दो असई की एक पसई' इत्यादि विभाग से होती है, तब उसको विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण कहते हैं ।
मान आदि के अर्थ इस विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के पांचों प्रकारों के अर्थ इस प्रकार हैं— मान— द्रव्य — तरल तेल आदि तथा ठोस धान्य आदि को मापने का पात्रविशेष ।
उन्मान —- तोलने की तराजू आदि ।
अवमान— क्षेत्र को मापने के दण्ड, गज आदि ।
गणिम एक, दो, तीन आदि गणना (गिनती ) ।
द्रव्यसंग्रह गा. २७
तत्त्वार्थसूत्र ५/७ - ११