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अनुयोगद्वारसूत्र
और २. विभागनिष्पन्न।
इस प्रकार से द्रव्यप्रमाण के दो भेदों को जानकर शिष्य पुनः उन दोनों के स्वरूपविशेष को जानने के लिए पहले प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण विषयक जिज्ञासा प्रस्तुत करता है। प्रदेशनिष्पन्नद्रव्यप्रमाण
३१५. से किं तं पदेसनिप्फण्णे ?
पदेसनिप्फण्णे परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव दसपएसिए संखिजपएसिए असंखिजपएसिए अणंतपदेसिए । से तं पदेसनिष्फण्णे ।
[३१५ प्र.] भगवन् ! प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण का क्या स्वरूप है ?
[३१५ उ.] आयुष्मन् ! परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशों यावत् दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों, असंख्यात प्रदेशों और अनन्त प्रदेशों से जो निष्पन्न —सिद्ध होता है, उसे प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण कहते हैं।
विवेचन द्रव्य विषयक प्रमाण को द्रव्यप्रमाण कहते हैं, अर्थात् द्रव्य के विषय में जो प्रमाण किया जाए अथवा द्रव्यों का जिसके द्वारा प्रमाण किया जाये या जिन द्रव्यों का प्रमाण किया जाए, उसे द्रव्यप्रमाण कहते हैं और उसमें जो एक, दो, तीन आदि प्रदेशों से निष्पन्न सिद्ध हो उसे प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण कहते हैं। इस प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण में परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेश वाले स्कन्ध तक के सभी द्रव्यों का समावेश है।
परमाणु एक प्रदेश वाला है, उससे लेकर दो, तीन, चार आदि यावत् अनन्त परमाणुओं के संयोग से निष्पन्न स्कन्ध प्रमाण द्वारा ग्राह्य होने के कारण प्रमेय हैं, तथापि उनको भी रूढिवशात् प्रमाण इसलिए कहते हैं कि लोक में ऐसा व्यवहार देखा जाता है। यथा—जो द्रव्य धान्यादि द्रोणप्रसाण से परिमित होता है, उसे यह 'धान्य द्रोण' है ऐसा कहते हैं। क्योंकि 'प्रमीयते यत्तत् प्रमाणम्-जो मापा जाये, वह प्रमाण' इस प्रकार की कर्मसाधन रूप प्रमाण शब्द की वाच्यता इन परमाणु आदि द्रव्यों में संगत हो जाती है। इसीलिए वे भी प्रमाण कहे जाते हैं।
इसके अतिरिक्त जब 'प्रमीयतेऽनेन इति प्रमाणम्' इस प्रकार से प्रमाण शब्द की व्युत्पत्ति करणसाधन में की जाती है तब परमाणु आदि द्रव्यों का एक, दो, तीन आदि परमाणुओं से निष्पन्न स्वरूप मुख्य रूप से प्रमाण होता है। क्योंकि वे उसके द्वारा ही जाने जाते हैं तथा इस स्वरूप के साथ सम्बन्धित होने के कारण परमाणु आदि द्रव्य भी उपचार से प्रमाणभूत कहे जाते हैं। जब प्रमाण शब्द की 'प्रमितिः प्रमाणम्' इस प्रकार से भावसाधन में व्युत्पत्ति की जाती है तब प्रमिति प्रमाण शब्द की वाच्य होती है और प्रमिति, प्रमाण एवं प्रमेय के अधीन होने से प्रमाण और प्रमेय उपचार से प्रमाण शब्द के वाच्य सिद्ध होते हैं । इस प्रकार कर्मसाधन पक्ष में परमाणु आदि द्रव्य मुख्य रूप से एवं करण और भाव साधन पक्ष में वे उपचार से प्रमाण हैं। इसीलिए परमाणु आदि को प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण कहा है।
परमाणु आदि में प्रदेशनिष्पन्नता स्वगत प्रदेशों से ही जाननी चाहिए। क्योंकि स्वगत प्रदेशों के द्वारा ही प्रदेशनिष्पन्नता का विचार किया जाना सम्भव है।
प्रदेश का लक्षण- आकाश के अविभागी अंश को प्रदेश कहते हैं। अर्थात् आकाश के जितने भाग को