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________________ नामाधिकारनिरूपण २१७ हैं—तीर्थंकरमाता, चक्रवर्तीमाता, बलदेवमाता, वासुदेवमाता, राजमाता, गणिमाता, वाचकमाता आदि ये सब अपत्यनामक हैं। इस प्रकार से तद्धितप्रत्यय से जन्य नाम की वक्तव्यता है। विवेचन— सूत्रोक्त तीर्थंकरमाता आदि नाम अपत्यार्थबोधक तद्धितप्रत्ययनिष्पन्न हैं। तित्थयरमाता अर्थात् तीर्थंकरोऽपत्यं यस्याः सा तीर्थंकरमाता—तीर्थंकर जिनका पुत्र है, वह तीर्थंकरमाता, यहां तीर्थकर रूप सुप्रसिद्ध से अप्रसिद्ध माता को विशेषित किया गया है अर्थात् तीर्थंकरादि के कारण माता विशेषित–संमानार्ह हुई है। इसी प्रकार चक्रवर्तीमाता आदि नामों का अर्थ समझ लेना चाहिए। उपर्युक्त तद्धितप्रत्ययनिष्पन्ननाम की व्याख्या है। अब धातुज नाम का स्वरूप बतलाते हैं। धातुजनाम ३११. से किं तं धाउए ? धाउए भू सत्तायां परस्मैभाषा, एध वृद्धौ, स्पर्द्ध संहर्षे, गाध प्रतिष्ठा-लिप्सयोर्ग्रन्थे च, बाधृ लोडने । से तं धाउए । [३११ प्र.] भगवन् ! धातुजनाम का क्या स्वरूप है ? [३११ उ.] अयुष्मन् ! परस्मैपदी सत्तार्थक भू धातु, वृद्ध्यर्थक एध् धातु, संघर्षार्थक स्पर्द्ध धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा या संचय अर्थक गाधृ और विलोडनार्थक बाधृ धातु आदि से निष्पन्न भव, एधमान आदि नाम धातुजनाम हैं। विवेचन— सूत्र में धातुजनाम का वर्णन किया है कि जो नाम धातु से निष्पन्न होते हैं वे धातुजनाम हैं। निरुक्तिजनाम ३१२. से किं तं निरुत्तिए ? निरुत्तिए मह्यां शेते महिषः, भ्रमति च रौति च भ्रमरः, मुहुर्मुहुर्लसति मुसलं, कपिरिव लम्बते त्थच्च करोति कपित्थं, चिदिति करोति खल्लं च भवति चिक्खल्लं, ऊर्ध्वकर्णः उलूकः, मेखस्य माला मेखला । से तं निरुत्तिए । से तं भावप्पमाणे । से तं पमाणनामे । से तं दसनामे । से तं नामे । ॥ नामे त्ति पयं सम्मत्तं ॥ [३१२ प्र.] भगवन् ! निरुक्तिजनाम का क्या आशय है ? __ [३१२ उ.] आयुष्मन् ! (निरुक्ति से निष्पन्ननाम निरुक्तिजनाम हैं।) जैसे—मह्यां शेते महिषः—पृथ्वी पर जो शयन करे वह महिष-भैंसा, भ्रमति रौति इति भ्रमरः भ्रमण करते हुए जो शब्द करे वह भ्रमर, मुहुर्मुहुर्लसति इति मुसलं—जो बारंबार ऊंचा-नीचा हो वह मूसल, कपिरिव लम्बते त्थच्चं (चेष्टा) करोति इति कपित्थं कपि बंदर के समान वृक्ष की शाखा पर चेष्टा करता है वह कपित्थ, चिदिति करोति खल्लं च भवति इति चिक्खल्लं—पैरों के साथ जो चिपके वह चिक्खल (कीचड़), ऊर्ध्वकर्णः इति उलूकः जिसके कान ऊपर उठे हों वह उलूक (उल्लू), मेखस्य माला मेखला मेघों की माला मेखला इत्यादि निरुक्तिजतद्धितनाम हैं।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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