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अनुयोगद्वारसूत्र ___ विवेचन— सूत्रोक्त नाम समीप-निकट-पास अर्थ में तद्धित 'अण्' प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होने के कारण समीपार्थबोधक तद्धितज नाम हैं। संयूथनाम
३०८. से किं तं. संजूहनामे ? संजूहनामे तरंगवतिक्कारे मलयवतिकारे अप्लाणुसट्टिकारे बिंदुकारे । से तं संजूहनामे । [३०८ प्र.] भगवन् ! संयूथनाम किसे कहते हैं ?
[३०८ उ.] आयुष्मन् ! तरंगवतीकार, मलयवतीकर, आत्मानुषष्ठिकार, बिन्दुकार आदि नाम संयूथनाम के उदाहरण हैं।
विवेचन— सूत्र में संयूथनाम का स्वरूप बतलाने के उदाहरणों का उल्लेख किया है। जिसका आशय इस प्रकार है
ग्रंथरचना को संयूथ कहते हैं। यह ग्रंथरचना रूप संयूथ जिस तद्धित प्रत्यय से सूचित किया जाता है, वह संयूथार्थ तद्धित प्रत्यय से निष्पन्ननाम संयूथनाम कहलाता है।
मूल में तरंगवतीकार, मलयवतीकार जो निर्देश किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि तरंगवती नामक कथा ग्रन्थ का करनेवाला (लेखक) तरंगवतीकार, मलयवती ग्रन्थ का कर्ता मलयवतीकार कहलाता है। इसी प्रकार आत्मानुषष्ठि, बिन्दुक आदि ग्रन्थों के लिए भी समझ लेना चाहिए। ऐश्वर्यनाम
३०९. से किं तं ईसरियनामे ?
ईसरियनामे राईसरे तलवरे माडंबिए कोडुबिए इब्भे सेट्ठी सत्थवाहे सेणावई । से तं ईसरियनामे ।
[३०९ प्र.] भगवन् ! ऐश्वर्यनाम का क्या स्वरूप है ?
[३०९ उ.] आयुष्मन् ! ऐश्वर्य द्योतक शब्दों से तद्धित प्रत्यय करने पर निष्पन्न ऐश्वर्यनाम राजेश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति आदि रूप हैं । यह ऐश्वर्यनाम का स्वरूप है।
विवेचन— सूत्र में उल्लिखित ऐश्वर्यद्योतक नाम स्वार्थ में 'कष्' प्रत्यय लगाने से निष्पन्न हुए हैं। इसीलिए ये सभी नाम ऐश्वर्यबोधक तद्धितज नाम माने गये हैं। अपत्यनाम
३१०. से किं तं अवच्चनामे ?
अवच्चनामे तित्थयरमाया चक्कवट्टिमाया बलदेवमाया वासुदेवमाया रायमाया गणिमाया वायगमाया। से तं अवच्चनामे । से तं तद्धिते ।
[३१० प्र.] भगवन् ! अपत्यनाम किसे कहते हैं ? [३१० उ.] आयुष्मन् ! अपत्य—पुत्र से विशेषित होने अर्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्ननाम इस प्रकार