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________________ नामाधिकारनिरूपण २१५ श्लोकनाम ३०५. से किं तं सिलोयनामे ? सिलोयनामे समणे माहणे सव्वातिही । से तं सिलोयनामे । [३०५ प्र.] भगवन् ! श्लोकनाम किसे कहते हैं ? [३०५ उ.] आयुष्मन् ! सभी के अतिथि श्रमण, ब्राह्मण श्लोकनाम के उदाहरण हैं। विवेचन— सूत्र में उदाहरण द्वारा श्लोकनाम की व्याख्या की है। जिसका आशय यह है श्लोक अर्थात् यश के अर्थ में तद्धित प्रत्यय होने पर निष्पन्न होने वाला नाम श्लोकनाम है। उदाहरण रूप श्रमण और ब्राह्मण शब्दों में 'अर्शादिभ्योऽच' सूत्र द्वारा प्रशस्तार्थ में मत्वर्थीय 'अच्' प्रत्यय हुआ है और तपश्चर्यादि श्रम से युक्त होने से श्रमण और ब्रह्म (आत्मा) के आराधक होने से ब्राह्मण प्रशस्त सभी के आ माने जाने से श्लोकनाम के उदाहरण हैं। संयोगनाम ३०६. से किं तं संजोगनामे ? संजोगनामे रण्णो ससुरए, रण्णो सालए, रण्णो सड्ढुए, रण्णो जामाउए, रन्नो भगिणीवती । से तं संजोगनामे । [३०६ प्र.] भगवन् ! संयोगनाम किसे कहते हैं ? [३०६ उ.] आयुष्मन् ! संयोगनाम का रूप इस प्रकार समझना चाहिए राजा का ससुर—राजकीय ससुर, राजा का साला—राजकीय साला, राजा का साटू-राजकीय साढू, राजा का जमाई राजकीय जमाई (जामाता), राजा का बहनोई राजकीय बहनोई इत्यादि संयोगनाम हैं। विवेचन— सूत्र में सम्बन्धार्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्न-संयोगनामों का उल्लेख है। सूत्र में तो 'रण्णो ससुरए' इत्यादि विग्रह मात्र दिखलाया है। जिनका अर्थ यह हुआ—राज्ञः अयं राजकीयः श्वसुरः इत्यादि। इन प्रयोगों में 'राज्ञः कच्' इस सूत्र से राजन् शब्द में 'छ' प्रत्यय होकर 'छ' को 'इय्' प्रत्यय हुआ है। इसलिए ये और इसी प्रकार के अन्य नाम संयोगनिष्पन्न तद्धितज नाम जानना चहिए। समीपनाम ३०७. से किं तं समीवनामे ? समीवनामे गिरिस्स समीवे णगरं गिरिणगरं, विदिसाए समीवे णगरं वेदिसं, बेन्नाए समीवे णगरं बेनायडं, तगराए समीवे णगरं तगरायडं । से तं समीवनामे । [३०७ प्र.] भगवन् ! समीपनाम किसे कहते हैं ? [३०७ उ.] आयुष्मन् ! समीप अर्थक तद्धित प्रत्यय-निष्पन्ननाम—गिरि के समीप का नगर गिरिनगर, विदिशा के समीप का नगर वैदिश, वेन्ना के समीप का नगर वेन्नातट (वैन), तगरा के समीप का नगर तगरावट (तागर) आदि रूप जानना चाहिए।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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