SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामाधिकारनिरूपण २१३ विवेचन – एकशेषसमास विषयक स्पष्टीकरण इस प्रकार है समान रूप वाले दो या दो से अधिक पदों के समास में एक पद शेष रहे और दूसरे पदों का लोप हो जाये तो उसे एकशेषसमास कहते हैं । इसमें 'स्वरूपाणामेकशेषएकविभक्तौ' इस सूत्र के अनुसार एक ही पद शेष रहता है और जो एक पद शेष रहता है वह भी द्विवचन में द्वित्व का और बहुवचन में बहुत्व का वाचक होता है। जैसे'पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषौ', 'पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषाः'। समानार्थक विरूप पदों में भी एकशेषसमास होता है। जैसे वक्रदण्डश्च कुटिलदण्डश्चेति वक्रदण्डौ अथवा कुटिलदण्डौ। ___एक व्यक्ति की विवक्षा में 'एकः पुरुषः' और बहुत व्यक्तियों की विवक्षा होने पर 'बहवः पुरुषाः' प्रयोग होता है। इस बहुवचन की विवक्षा में एक ही 'पुरुष' पद अवशिष्ट रहता है और शेष पद लुप्त हो जाते हैं। बहुत व्यक्तियों की विवक्षा में पुरुषाः ऐसा बहुवचनात्मक प्रयोग होता है, किन्तु जाति की विवक्षा में एकवचन रूप एकः पुरुषः प्रयोग होता है। क्योंकि जाति के एक होने से बहुवचन का प्रयोग नहीं होता है। इसी प्रकार एकः कर्षापणः, बहवः कार्षापणाः आदि पदों में भी जानना चाहिए। यह एकशेषसमास का आशय है। मुख्य समासभेदों के बोधक सूत्र– व्याकरणशास्त्र के अनुसार संक्षेप में इस प्रकार हैं—प्रायः पूर्वपदार्थप्रधान अव्ययीभाव, उत्तरपदार्थप्रधान तत्पुरुष, अन्यपदार्थप्रधान बहुब्रीहि, उभयपदार्थप्रधान द्वन्द्व और संख्याप्रधान द्विगु समास होता है। कर्मधारय तत्पुरुष का और द्विगु कर्मधारय समास का भेद है। ____ अब भावप्रमाण के दूसरे भेद तद्धितज नाम की प्ररूपणा करते हैं। तद्धितजभावप्रमाणनाम ३०२. से किं तं तद्धियए ? तद्धियए कम्मे १ सिप्प २ सिलोए ३ संजोग ४ समीवओ ५ य संजूहे ६ । इस्सरिया ७ ऽवच्चेण ८ य तद्धितणामं तु अट्ठविहं ॥ ९२॥ [३०२ प्र.] भगवन् ! तद्धित से निष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है ? [३०२ उ.] आयुष्मन् ! १. कर्म, २. शिल्प, ३. श्लोक, ४. संयोग, ५. समीप, ६. संयूथ, ७. ऐश्वर्य, ८. अपत्य, इस प्रकार तद्धितनिष्पन्ननाम आठ प्रकार का है। ९२ विवेचन— गाथोक्त क्रमानुसार अब तद्धितज नामों का आशय स्पष्ट करते हैं। कर्गनाम ३०३. से किं तं कम्मणामे ? कम्मणामे दोस्सिए सोत्तिए कप्पासिए सुत्तवेतालिए भंडवेतालिए कोलालिए । से तं कम्मनामे । [३०३ प्र.] भगवन् ! कर्मनाम का क्या स्वरूप है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy