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________________ नामाधिकारनिरूपण २११ विवेचन— सूत्र में उदाहरणों द्वारा कर्मधारयसमास की व्याख्या की है। जिसका आशय यह है जिसमें उपमान-उपमेय, विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध होता है वह कर्मधारयसमास है अथवा समान अधिकरण वाला तत्पुरुषसमास ही कर्मधारयसमास कहलाता है। यदि विशेष्ण प्रथम हो ते विशेषणपूर्वपदकर्मधारय, उपमान प्रथम हो तो उपमानपूर्वपदकर्मधारय, उपमान बाद में हे तो उपमानोत्तरपदकर्मधारय कहलाता है। सूत्र में जितने भी उदाहरण दिये हैं वे सब विशेषणपूर्वपदकर्मधारय के हैं। उपमानपूर्वपद के उदाहरण 'घन इव श्यामः घनश्यामः' और उपमानोत्तर के उदाहरण पुरुषसिंह जैसे शब्द जानना चाहिए। द्विगुसमास २९८. से किं तं दिगुसमासे ? दिगुसमासे तिण्णि कडुगा तिकडुगं, तिण्णि महुराणि तिमहुरं, तिण्णि गुणा तिगुणं, तिण्णि पुरा तिपुरं, तिण्णि सरा तिसरं, तिण्णि पुक्खरा तिपुक्खरं, तिण्णि बिंदुया तिबिंदुयं, तिण्णि पहा तिपहं, पंच णदीओ पंचणदं, सत्त गया सत्तगयं, नव तुरगा नवतुरगं, दस गामा दसगाम, दस पुरा दसपुरं । से तं दिगुसमासे ।। [२९८ प्र.] भगवन् ! द्विगुसमास किसे कहते हैं ? [२९८ उ.] आयुष्मन् ! द्विगुसमास का रूप इस प्रकार का है—तीन कटुक वस्तुओं का समूह—त्रिकटुक, तीन मधुरों का समूह–त्रिमधुर, तीन गुणों का समूह–त्रिगुण, तीन पुरों—नगरों का समूह—त्रिपुर, तीन स्वरों का समूह–त्रिस्वर, तीन पुष्करों—कमलों का समूह–त्रिपुष्कर, तीन बिन्दुओं का समूह–त्रिबिन्दु, तीन पथ–रास्तों का समूह–त्रिपथ, पांच नदियों का समूह—पंचनद, सात गजों का समूह–सप्तगज, नौ तुरगों—अश्वों का समूहनवतुरग, दस ग्रामों का समूह—दसग्राम, दस पुरों का समूह-दसपुर, यह द्विगुसमास है। विवेचन– सूत्र में द्विगुसमास के उदाहरण दिये हैं। जिनसे यह आशय फलित होता है जिस समास में प्रथम पद संख्यावाचक हो और जिससे समाहार—समूह का बोध होता हो, उसे द्विगुसमास कहते हैं। इसमें दूसरा पद प्रधान होता है, जिससे बहुधा यह जाना जाता है कि इतनी वस्तुओं का समाहार हुआ है। सूत्रोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है । द्विगुसमास की यह विशेषता है कि इसमें नपुंसकलिंग और एकवचन ही आता है, जैसे त्रिकटुकम्। कर्मधारयसमास में पहला पद सामान्य विशेषण रूप और द्विगुसमास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है। इसलिए ये दोनों समास पृथक्-पृथक् कहे गये हैं। तत्पुरुषसमास २९९. से किं तं तप्पुरिसे समासे ? तप्पुरिसे समासे तित्थे कागो तित्थकागो, वणे हत्थी वणहत्थी, वणे वराहो वणवराहो, वणे महिसो वणमहिसो, वणे मयूरो वणमयूरो । से तं तप्पुरिसे समासे । [२९९ प्र.] भगवन् ! तत्पुरुषसमास का क्या स्वरूप है ? । [२९९ उ.] आयुष्मन् ! तत्पुरुषसमास का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए तीर्थ में काक (कौआ)
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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