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अनुयोगद्वारसूत्र
द्वन्द्वसमास के शब्दों से यदि एक मिश्रित वस्तु का बोध होता है तो वे एकवचन में प्रयुक्त होते हैं। यथा— — मैंने दाल-रोटी खा ली है, उनमें ऊंच-नीच नहीं है। किन्तु जिन शब्दों से मिश्रित वस्तु का बोध नहीं होता, वे बहुवचन में प्रयुक्त होते । जैसे सीता-राम वन को गये ।
यह समास समाहार द्वन्द्व और इतरेतर द्वन्द्व के भेद से दो प्रकार का है । समाहार द्वन्द्व में प्रत्येक पद की प्रधानता नहीं होती, प्रत्युत सामूहिक अर्थ का बोध होता है। इसमें सदा नपुंसकलिंग तथा किसी एक विभक्ति का एकवचन ही रहता है।
सूत्रोक्त उदाहरणों में से 'दन्तोष्ठम्' और 'स्तनोदरम्' में प्राणी के अंग होने से एकवद्भाव हुआ है। 'वस्त्रपात्रम्' में अप्राणी जाति होने से तथा 'अश्वमहिषम्' और 'अहिनकुलम्' पदों में शाश्वत विरोध होने के कारण एकवचन का प्रयोग हुआ जानना चाहिए।
माता और पिता-मातापिता, पुण्य और पाप-पुण्यपाप इत्यादि शब्द हिन्दी भाषा सम्बन्धी द्वन्द्वसमास के उदाहरण हैं।
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बहुब्रीहिसमा
२९६. से किं तं बहुव्वीहीसमासे ?
बहुव्वीहिसमासे फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय - कलंबा सो इमो गिरी फुल्लियकुडय - कलंबो । से तं बहुव्वीहिसमासे ।
[२९६ प्र.] भगवन् ! बहुब्रीहिसमास किसे कहते हैं ?
[ २९६ उ.] आयुष्मन् ! बहुब्रीहिसमास का लक्षण यह है— इस पर्वत पर पुष्पित ( प्रफुल्लित) कुटज और कंद वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहां 'फुल्लकुटजकदंब' पद बहुब्रीहिसमास है ।
विवेचन—–— बहुब्रीहिसमास - समासगत पद जब अपने से भिन्न किसी अन्य पदार्थ का बोध कराये अर्थात् जिस समास में अन्यपद प्रधान हो, उसे बहुब्रीहिसमास कहते हैं । बहुब्रीहिसमास में शब्द के दोनों ही पद गौण होते हैं। जो सूत्रोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि कुटज और कदंब शब्द प्रधान नहीं हैं, किन्तु इनसे युक्त पर्वत रूप अन्य पद प्रधान है।
बहुब्रीहिसमास में अन्तिम पद में विभक्ति का लोप नहीं भी होता है। विभक्ति का लोप प्रथम पद में और यदि दो से अधिक पदों का समास हो तो अन्तिम पद के अतिरिक्त अन्य पदों में होता है ।
कर्मधारयसमास
२९७. से किं तं कम्मधारयसमासे ?
कम्मधारयसमासे धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पटो सेतपटो, रत्तो पटो रत्तपटो । से तं कम्मधारयसमासे ।
[ २९७ प्र.] भगवन् ! कर्मधारयसमास का क्या स्वरूप है ?
[२९७ उ.] आयुष्मन् ! ‘धवलो वृषभ: धवलवृषभ:', 'कृष्णो मृगः कृष्णमृगः', 'श्वेतः पटः श्वेतपटः', 'रक्तः पटः रक्तपट : ' यह कर्मधारयसमास है ।