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नामाधिकारनिरूपण
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भाव अर्थात् वस्तुगत गुण । अतएव भाव एवं प्रमाण-भाव ही प्रमाण है—इस व्युत्पत्ति के अनुसार भाव रूप प्रमाण को भावप्रमाण कहते हैं और उसके द्वारा निष्पन्न नाम भावप्रमाणनिष्पन्ननाम कहलाता है। वह सामासिक आदि के भेद से चार प्रकार का है। आगे क्रम से उनका वर्णन करते हैं। सामासिकभावप्रमाणनिष्पन्ननाम
२९४. से किं तं सामासिए ? सामासिए सत्त समासा भवंति । तं जहा
दंदे १ य बहुव्वीही २ कम्मधारए ३ दिग्गु ४ य ।
तप्युरिस ५ अव्वईभावे ६ एक्कसेसे ७ य सत्तमे ॥ ९१॥ [२९४ प्र.] भगवन् ! सामासिकभावप्रमाण किसे कहते हैं ? [२९४ उ.] आयुष्मन् ! सामासिकनामनिष्पन्नता के हेतुभूत समास सात हैं। वे इस प्रकार १. द्वन्द्व, २. बहुब्रीहि, ३. कर्मधारय, ४. द्विगु, ५. तत्पुरुष, ५. अव्ययीभाव और ७. एकशेष । ९१
विवेचन— सूत्र में सामासिक नाम की प्ररूपणा के लिए सात समासों के नाम बताये हैं। दो या दो से अधिक पदों में विभक्तिं आदि का लोप करके उन्हें संक्षिप्त करना—इकट्ठा करना समास कहलाता है।
समासयुक्त शब्द जिन शब्दों के मेल से बनता है, उन्हें खंड कहते हैं। जिन शब्दों में समास होता है उनका बल एकसा नहीं होता, किन्तु उनमें से किसी का अर्थ मुख्य हो जाता है और शेष शब्द उस अर्थ के पुष्ट करते हैं। अपेक्षाभेद से समास के द्वन्द्व आदि सात भेद हैं। द्वन्द्वसमास
२९५. से किं तं दंदे समासे ?
दंदे समासे दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वश्च महिषश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम् । से तं दंदे समासे ।
[२९५ प्र.] भगवन् ! द्वन्द्वसमास का क्या स्वरूप है ?
[२९५ उ.] आयुष्मन् ! 'दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्,' 'स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्,''वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्,''अश्वश्च महिषश्च इति अश्वमहिषम्,''अहिश्च नकुलश्च इति अहिनकुलम्' ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप
विवेचन– सूत्र में उदाहरणों के द्वारा द्वन्द्वसमास का आशय स्पष्ट किया है। तत्सम्बन्धी विशेष वक्तव्य इस प्रकार है
जिस समास में सभी पद समान रूप से प्रधान होते हैं तथा जिनके बीच के 'और' अथवा 'च' शब्द का लोप हो जाता है, किन्तु विग्रह करने पर सम्बन्ध के लिए पुनः 'च' अथवा 'और' शब्द का प्रयोग किया जाता है, उसे द्वन्द्वसमास कहते हैं।