________________
२०८
अनुयोगद्वारसूत्र
आभिप्रायिकनाम
२९१. से किं तं आभिप्पाइयनामे ?
आभिप्पाइयनामे अंबए निंबए बकुलए पलासए सिणए पिलुयए करीरए । से तं आभिप्पाइयनामे । से तं ठवणप्पमाणे ।
[२९१ प्र.] भगवन् ! आभिप्रायिकनाम का क्या स्वरूप है ?
[२९१ उ.] आयुष्मन् ! (गुण की अपेक्षा रखे विना अपने अभिप्राय के अनुसार मनचाहा नाम रख लेना आभिप्रायिक नाम कहलाता है) जैसे—अंबक, निम्बक, बकुलक, पलाशक, स्नेहक, पीलुक, करीरक आदि आभिप्रायिक नाम जानना चाहिए।
यह स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम की प्ररूपणा है।
विवेचन— सूत्र में स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम के अंतिम भेद आभिप्रायिक नाम का स्वरूप बतलाया है। आभिप्रायिकनामनिष्पत्ति का आधार अपना अभिप्राय ही है। उदाहरण के रूप में बताये गये नामों की तरह अन्य नाम स्वयमेव समझ लेना चाहिए। द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम
२९२. से किं तं दव्वप्पमाणे ? दव्वप्पमाणे छव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए । से तं दव्वप्पमाणे। [२९२ प्र.] भगवन् ! द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२९२ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम छह प्रकार का है। यथा—धर्मास्तिकाय यावत् अद्धासमय । यह द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम का स्वरूप है।
विवेचन— धर्मास्तिकाय आदि षट् द्रव्यों के नाम द्रव्यविषयक होने से अथवा द्रव्यों के सिवाय अन्य के नहीं होने से द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम हैं।
अनदिसिद्धान्तनाम में भी इन्हीं छह द्रव्यों के नामों का उल्लेख किय है किन्तु वस्तु अनन्तधर्मात्मक है, अतः विवक्षाभेद के कारण दोष नहीं समझना चाहिए। भावप्रमाणनिष्पन्ननाम
२९३. से किं तं भावप्पमाणे ? भावप्पमाणे चउव्हेि पण्णत्ते । तं जहा सामासिए १ तद्धितए २ धातुए ३ निरुत्तिए ४ । [२९३ प्र.] भगवन् ! भावप्रमाण किसे कहते हैं ?
[२९३ उ.] आयुष्मन् ! भावप्रमाण १. सामासिक, २. तद्धितज, ३. धातुज और ४. निरुक्तिज के भेद से चार प्रकार का है।
विवेचन— भावप्रमाणनिष्पन्ननाम की प्ररूपणा प्रारंभ करने के लिए सूत्र में उसके चार भेदों के नाम गिनाये हैं।