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________________ नामाधिकारनिरूपण विवेचन —— सूत्र में उदाहरणों के माध्यम से पाषण्डनाम का स्वरूप बतलाया है। मत, संप्रदाय, आचार-विचार की पद्धति अथवा व्रत को पाषण्ड कहते हैं । अतएव कारण में कार्य का उपचार करके पाषण्ड (व्रत आदि) के आधार से स्थापित नाम पाषण्डनाम कहलाता है । पाषण्डनाम के उदाहरणों में निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, गैरिक, आजीवक के भेद से श्रमण पांच प्रकार के हैं । भस्म से लिप्त शरीर वाले ऐसे शैव- शिव के भक्तों को पाण्डुरांग कहते हैं। इसी प्रकार बुद्धदर्शन के अनुयायी भिक्षु, चिता की राख से अपने शरीर को लिप्त रखने वाले श्मशानवासी कापालिक, तपसाधना करने वाले तापस और गृहत्यागी संन्यासी परिव्राजक कहलाते हैं । गणनाम २०७ २८९. से किं तं गणनामे ? गणनामे मल्ले मल्लदिने मल्लधम्मे मल्लसम्म मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरक्खिए । सेतं गणनामे । [२८९ प्र.] भगवन् ! गणनाम का क्या स्वरूप है ? [२८९ उ.] आयुष्मन् ! गण के आधार से स्थापित नाम को गणनाम कहते हैं। जैसे—मल्ल, मल्लदत्त, मल्लधर्म, मल्लशर्म, मल्लदेव, मल्लदास, मल्लसेन, मल्लरक्षित आदि गण - स्थापनानिष्पन्ननाम हैं । विवेचन — सूत्र में गणनाम का स्वरूप स्पष्ट किया है। आयुधजीवियों के संघ-समूह को गण कहते हैं । इसमें पारस्परिक सहमति अथवा सम्मति के आधार से राज्यव्यवस्था का निर्णय किया जाता है। अतएव उसके आधार से नामस्थापन गणनाम कहा जाता है । नौ मल्ली, नौ लिच्छवी इन अठारह राजाओं के राज्यों का एक गणराज्य था । इन के नाम शास्त्रों में आये हैं । अतः यहां उदाहरण के रूप में मल्ल, मल्लदत्त आदि नामों का उल्लेख किया है। जीवितहेतुनाम २९०. से किं तं जीवियाहेउं ? जीवियाहेउं अवकरए उक्कुरुडए उज्झियए कज्जवए सुप्पए । से तं जीवियाहेउं । [२९० प्र.] भगवन् ! जीवितहेतुनाम का क्या स्वरूप है ? [२९० उ.] आयुष्मन् ! (जिस स्त्री की संतान जन्म लेते ही मर जाती हो उसकी संतान को) दीर्घकाल तक जीवित रखने के निमित्त नाम रखने को जीवितहेतुनाम कहते हैं। जैसे अवकरक (कचरा), उत्कुरुटक (उकरडा), उज्झितक (त्यागा हुआ), कचवरक ( कूड़े-कचरे का ढेर), सूर्पक (सूपड़ा – अन्न में से भूसा निकालने का साधन) आदि। ये सब जीवितहेतुनाम हैं । विवेचन- सूत्र में जीवितहेतुनाम का स्वरूप बताया है। संतान के प्रति ममत्वभाव और किसी न किसी प्रकार से संतान जीवित रहे, यह भावना इस नामकरण में अन्तर्निहित है ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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