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________________ २०६ अनुयोगद्वारसूत्र [२८६ प्र.] भगवन् ! देवनाम का क्या स्वरूप है ? [२८६ उ.] आयुष्मन् ! देवनाम का यह स्वरूप है। यथा—अग्नि देवता से अधिष्ठित नक्षत्र में उत्पन्न हुए (बालक) का अग्निक, अग्निदत्त, अग्निधर्म, अग्निशर्म, अग्निदास, अग्निसेन, अग्निरक्षित आदि नाम रखना। इसी प्रकार से अन्य सभी नक्षत्र-देवताओं के नाम पर स्थापित नामों के लिए भी जानना चाहिए। देवताओं के नामों की भी संग्राहक गाथायें हैं, यथा १. अग्नि, २. प्रजापति, ३. सोम, ४. रुद्र, ५. अदिति, ६. बृहस्पति, ७. सर्प, ८. पिता, ९. भग, १०. अर्यमा, ११. सविता, १२. त्वष्टा, १३. वायु, १४. इन्द्राग्नि, १५. मित्र, १६. इन्द्र, १७. निर्ऋति, १८. अम्भ, १९. विश्व, २०. ब्रह्मा, २१. विष्णु, २२. वसु, २३. वरुण, २४. अज, २५. विवर्द्धि, २६. पूषा, २७. अश्व और २८. यम, यह अट्ठाईस देवताओं के नाम जानना चाहिए। ८९, ९० यह देवनाम का स्वरूप है। विवेचन— सूत्र में देवनाम का स्वरूप बताया है। जैसे अग्निदेवता से अधिष्ठित कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न हुए व्यक्ति के नामस्थापन में नक्षत्र को गौण मानकर देवनाम की मुख्यता से अग्निदत्त, अग्निसेन आदि नाम रखे जाते हैं, उसी प्रकार प्राजापतिक आदि नामों के लिए प्रजापति आदि देवनामों की मुख्यता समझ लेना चाहिए। संग्रहणी गाथोक्त क्रम से अग्नि आदि अट्ठाईस देवताओं के नाम क्रमशः कृत्तिका आदि नक्षत्रों के अधिष्ठातृ देवों के हैं। कुलनाम २८७. से किं तं कुलनामे ? कुलनामे उग्गे भोगे राइण्णे खत्तिए इक्खागे णाते कोरव्वे । से तं कुलनामे । [२८७ प्र.] भगवन् ! कुलनाम किसे कहते हैं ? [२८७ उ.] आयुष्मन् ! (जिस नाम का आधार कुल हो, उसे कुलनाम कहते हैं।) जैसे उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य इत्यादि। यह कुलनाम का स्वरूप है। विवेचन— पिता के वंश को कुल कहते हैं। कुल के नाम का कारण कोई प्रमुख व्यक्ति या प्रसंग-विशेष होता है। अतएव पितृवंश की परम्परा के आधार से किया जाने वाला नाम कुलनाम कहलाता है। जैसे उग्र कुल में जन्म लेने से उग्र नाम रखा जाना। इसी प्रकार भोग, राजन्य आदि नामों के विषय में जानना चाहिए। पाषण्डनाम २८८. से किं तं पासंडनामे ? पासंडनामे समणए पंडुरंगए भिक्खू कावालियए तावस परिव्वायगे । से तं पासंडनामे । [२८८ प्र.] भगवन् ! पाषण्डनाम का क्या स्वरूप है ? [२८८ उ.] आयुष्मन् ! श्रमण, पाण्डुरांग, भिक्षु, कापालिक, तापस, परिव्राजक यह पाषण्डनाम का स्वरूप जानना चाहिए।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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