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अनुयोगद्वारसूत्र
धर्म आदि की अपेक्षा नहीं होती। स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम
२८४. से किं तं ठवणप्पमाणे ? ठवणप्पमाणे सत्तविहे पण्णत्ते । तं जहा—
णक्खत-देवय-कुले पासंड-गणे य जीवियाहेउं ।
आभिप्पाउयणामे ठवणानामं तु सत्तविहं ॥ ८५॥ [२८४ प्र.] भगवन् ! स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है ? [२८४ उ.] आयुष्मन् ! स्थापनाप्रमाण से निष्पन्न नाम सात प्रकार का है। उन प्रकारों के नाम हैं
१. नक्षत्रनाम, २. देवनाम, ३. कुलनाम, ४. पाषंडनाम, ५. गणनाम, ६. जीवितनाम और ७. आभिप्रायिकनाम। ८५
विवेचन— सूत्र में स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम का वर्णन करने के लिए सात भेदों के नाम गिनाये हैं। इसका कारण यह है कि लोक में यह वस्तुएं स्थापना का आधार बनाई जाती हैं।
स्थापनाप्रमाणनिष्पन्ननाम का लक्षण— नाम की तरह लोकव्यवहार चलाने में स्थापना का भी प्रमुख स्थान है। यद्यपि प्रयोजन या अभिप्रायवश तदर्थशून्य वस्तु में तदाकार अथवा अतदाकार रूप में की जाने वाली स्थापना को स्थापना कहते हैं, यहां उसकी अपेक्षा नहीं है। किन्तु नक्षत्र, देवता, कुल आदि के आधार से किया जाने वाला नामकरण स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम है।
___ अब गाथोक्त क्रम से स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम के सातों भेदों का वर्णन करते हैं। नक्षत्रनाम
२८५. से किं तं नक्खत्तणामे ?
नक्खत्तणामे कत्तियाहिं जाए कत्तिए कत्तिदिण्णे कत्तिधम्मे कत्तिसम्म कत्तिदेवे कत्तिदासे कत्तिसेणे कत्तिरक्खिए । रोहिणीहिं जाए रोहिणिए रोहिणिदिन्ने रोहिणिधम्मे रोहिणिसम्मे रोहिणिदेवे रोहिणिदासे रोहिणिसेणे रोहिणिरक्खिए । एवं सव्वणक्खत्तेसु णामा भाणियव्वा । एत्थ संगहणिगाहाओ
कत्तिय १ रोहिणि २ मिगसिर ३ अद्दा ४ य पुणव्वसू ५ य पुस्से ६ य । तत्तो य अस्सिलेसा ७ मघाओ ८ दो फग्गुणीओ य ९-१० ॥ ८६॥ हत्थो ११ चित्ता १२ सादी १३ [य] विसाहा १४ तह य होइ अणुराहा १५ । जेट्ठा १६ मूलो १७ पुव्वासाढा १८ तह उत्तरा १९ चेव ॥ ८७॥ अभिई २० सवण २१ धणिट्ठा २२ सतिभिसदा २३ दो य होंति भद्दवया २४-२५। रेवति २६ अस्सिणि २७ भरणी २८ एसा नक्खत्तपरिवाडी ॥ ८८॥
से तं नक्खत्तनामे।