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________________ १८४ अनुयोगद्वारसूत्र विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार सामान्य से आठ विभक्तियों का कथन करके अब इनको उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं। २६१. (२) तत्थ पढमा विभत्ती निद्देसे सो इमो अहं व त्ति १ । बितिया पुण उवदेसे भण कुणसु इमं व तं व त्ति २ ॥ ५९॥ ततिया करणम्मि कया भणियं व कयं व तेण व मए वा ३ । हंदि णमो साहाए हवति चउत्थी पयाणम्मि ४ ॥ ६०॥ अवणय गिण्हय एत्तो इतो त्ति वा पंचमी अपायाणे ५ । छट्ठी तस्स इमस्स व गयस्स वा सामिसंबंधे ६ ॥६१॥ हवति पुण सत्तमी तं इमम्मि आधार काल भावे य ७ । आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण ! त्ति ८ ॥६२॥ से तं अट्ठणामे। [२६१-२] १. निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे— वह, यह अथवा मैं। २. उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे— इसको कहो, उसको करो आदि। ३. करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे- उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके और मेरे द्वारा किया गया। ४. संप्रदान, नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे विप्राय गां ददाति ब्राह्मण को (के लिए) गाय देता है। नमो जिनाय—जिनेश्वर के लिए मेरा नमस्कार हो । अग्नये स्वाहा—अग्नि देवता को हवि दिया जाता है। ... ५. अपादान में पंचमी होती है। जैसे— यहां से दूर करो अथवा इससे ले लो। ६. स्वस्वामीसम्बन्ध बतलाने में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे— उसकी अथवा इसकी यह वस्तु है। ७. आधार, काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे— (वह) इसमें है। ८. आमंत्रण अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है। जैसे—हे युवन् !।५९-६२ यह आठ विभक्तिरूप अष्टनाम का वर्णन है। विवेचन–सूत्रकार ने गाथा ५९ से ६२ तक पूर्वोक्त प्रथमा आदि आठ विभक्तियों का उदाहरण सहित वर्णन किया है। इन विभक्तियों द्वारा वाक्यगत शब्दों का परस्पर एक दूसरे के साथ ठीक-ठीक सम्बन्धों का परिज्ञान होता है तथा यह आठों विभक्तियां संज्ञावाचक शब्दों के साथ जुड़ती हैं किन्तु सर्वनाम शब्दों में आठवीं संबोधन विभक्ति प्रयुक्त नहीं होती है। __ हिन्दी भाषा में इन विभक्तियों की कारक संज्ञा है और कर्ता आदि भेद हैं, जिनके चिह्न इस प्रकार हैं कर्ता—ने। कर्म—को। करण से, द्वारा । संप्रदान को, के लिए। अपादान से। सम्बन्ध का, की, के। अधिकरण में, पर । संबोधनः हे, हो, अरे। हिन्दी भाषा में इन प्रत्ययों से संस्कृत जैसा एक, द्वि, बहुवचन की अपेक्षा कोई अंतर नहीं आता है। समान
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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