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________________ १८२ अनुयोगद्वारसूत्र शीघ्रता से गीत गाती है और पिंगला (कपिला) विकृत स्वर में गीत गाती है। ५४, ५५ विवेचन- इन दो गाथाओं द्वारा परोक्ष में गीत स्वरों द्वारा गायक की योग्यता, स्थिति आदि का अनुमान लगाने का संकेत किया है। कुछ भिन्नता के साथ अन्य प्रतियों में गाथा ५५ इस रूप में अंकित हैगोरी गायति महुरं सामा गायइ खरं च रूक्खं च । काली गायइ चउरं काणा य विलंवियं दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला । इस प्रकार से सप्त स्वरमंडल सम्बन्धी आवश्यक वर्णन करने के अनन्तर अब उपसंहार करते हैं। उपसंहार (११ आ) सत्त सरा तयो गामा मुच्छणा एक्कवीसतिं । ताणा एगूणपण्णासं सम्मत्तं सरमंडलं ॥५६॥ से तं सत्तनामे । [२६०-११-आ] इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिए उनके (७ x ७ =४९) उनपचास भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ। ५६ स्वरमंडल के वर्णन की पूर्णता के साथ सप्तनाम की वक्तव्यता भी समाप्त हुई। विवेचन— यह गाथा सप्तस्वर और सप्तनाम के वर्णन की समाप्ति सूचक है। उनपचास तानें होने के कारण यह है कि षड्ज आदि सात स्वरों में से प्रत्येक स्वर सात तानों में गाया जाता है तथा सप्ततंत्रिका वीणा में ४९ तानें होती हैं और इसी प्रकार एकतंत्रिका अथवा त्रितंत्रिका वीणा के साथ कंठ से गाई जाने वाली तानें भी ४९ होती हैं। इस प्रकार यह सप्तनाम का वर्णन है। अब क्रमप्राप्त अष्टनाम का निरूपण करते हैंअष्टनाम २६१. (१) से किं तं अट्ठनामे ? अट्ठनामे अट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता । तं जहा— , निद्देसे पढमा होति १ बितिया उवदेसणे २ । तइया करणम्मि कया ३ चउत्थी संपयावणे ४ ॥ ५७: पंचमी य अपायाणे ५ छट्ठी सस्सामिवायणे ६ । सत्तमी सण्णिधाणत्थे ७ अट्ठमाऽऽमंतणी भवे ८ ।। ५८॥ [२६१-१ प्र.] भगवन् ! अष्टनाम का क्या स्वरूप है ? [२६१-१ उ.] आयुष्मन् ! आठ प्रकार की वचनविभक्तियों को अष्टनाम कहते हैं। वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैं
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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