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________________ नामाधिकारनिरूपण १८१ विवेचन- सूत्रकार ने 'छद्दोसे अट्ठ गुणे' इन पदों के अनुसार गीत सम्बन्धी दोषों और विभिन्न अपेक्षाओं से गुणों का वर्णन किया है। वर्णन करने का कारण यह है कि गायक गीतविधाओं को जानता हुआ भी दोषों का निराकरण और गुणों का समायोजन करने का लक्ष्य नहीं रखे तो वह जनप्रिय और सम्माननीय नहीं हो पाता है। गीत के वृत्त-छन्द (१० ऐ) समं अद्धसमं चेव सव्वत्थ विसमं च जं । तिण्णि वित्तप्पयाराइं चउत्थं नोवलब्भइ ॥५२॥ [२६०-१०-ऐ] गीत के वृत्त-छन्द तीन प्रकार के होते हैं १. सम— जिसमें गीत के चरण और अक्षर सम हों अर्थात् चार चरण हों और उनमें गुरु-लघु अक्षर भी समान हों, अथवा जिसके चारों चरण सरीखे हों। २. अर्धसम—जिसमें प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान हों। ३. सर्वविषम- जिसमें सभी चरणों में अक्षरों की संख्या विषम हो, जिसके चारों चरण विषम हों। इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं पाया जाता है । ५२ गीत की भाषा (१० ओ) सक्कया पायवा चेव भणिईओ होंति दुण्णि उ । सरमंडलम्मि गिजंते पसत्था इसिभासिया ॥५३॥ [२६०-१०-ओ] भणतियां-गीत की भाषायें दो प्रकार की कही गई हैं—संस्कृत और प्राकृत। ये दोनों प्रशस्त एवं ऋषिभासित हैं और स्वरमंडल में पाई जाती है। ५३ विवेचन- उक्त दो गाथाओं में गीत के छन्दों और भाषाओं का विचार किया गया है। अब 'सो गाहिति' पद के अनुसार कौन किस प्रकार से गाता है ? इसका प्रश्नोत्तर विधा द्वारा निरूपण करते हैं। गीतगायक के प्रकार (११ अ) केसी गायति महुरं ? केसी गायति खरं च रुक्खं च ? । केसी गायति चउरं ? केसी य विलंबियं ? दुतं केसी ? विस्सरं पुण केरिसी ? ॥ ५४॥ [पंचपदी] सामा गायति महुरं, काली गायति खरं च रुक्खं च । गोरी गायति चउरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा, विस्सरं पुण पिंगला ॥ ५५॥ [पंचपदी] [२६०-११-अ. प्र.] कौन स्त्री मधुर स्वर में गाती है ? परुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? द्रुत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकृत स्वर में कौन गाती है ? _[२६०-११-अ. उ.] श्यामा (षोडशी) स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर (परुष) और . रूक्ष स्वर में गाती है, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से गीत गाती है, कानी स्त्री विलंबित (मंद) स्वर में गाती है। अंधी स्त्री
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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