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________________ १७६ अनुयोगद्वारसूत्र पंचमस्सरमंता उ हवंती पुहवीपती । सूरा संगहकत्तारो अणेगणरणायगा ५ ॥ ३६॥ धेवयस्सरमंता उ हवंति कलहप्पिया । साउणिया वग्गुरिया सोयरिया मच्छबंधा य ६ ॥ ३७॥ चंडाला मुट्ठिया मेता, जे यऽण्णे पावकारिणो । गोघातगा य चोरा य नेसातं सरमस्सिता ७ ॥ ३८॥ [२६०-५] इन सात स्वरों के (तत्तत् फल प्राप्ति के अनुसार) सात स्वरलक्षण कहे गये हैं। यथा १. षड्जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति—आजीविका प्राप्त करता है। उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है। उसे गोधन, पुत्र-पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है। वह स्त्रियों का प्रिय होता है। ३२ २. ऋषभस्वर वाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापतित्व, धन-धान्य, वस्त्र, गंध-सुगंधित पदार्थ, आभूषण-अलंकार, स्त्री, शयनासन आदि भोगसाधनों को प्राप्त करता है। ३३ __ ३. गांधारस्वर वाला श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है। वादित्रवृत्ति वाला होता है। कलाविदों में श्रेष्ठशिरोमणि माना जाता है। कवि अथवा कर्त्तव्यशील होता है। प्राज्ञ बुद्धिमान्—चतुर तथा अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है। ३४ ४. मध्यमस्वरभाषी सुखजीवी होते हैं । रुचि के अनुरूप खाते-पीते और जीते हैं तथा दूसरों को भी खिलातेपिलाते तथा दान देते हैं । ३५ ५. पंचमस्वर वाला व्यक्ति भूपति, शूरवीर, संग्राहक और अनेक गुणों का नायक होता है। ३६ ६. धैवतस्वर वाला पुरुष कलहप्रिय, शाकुनिक (पक्षियों को मारने वाला—चिड़ीमार), वागुरिक (हिरण आदि पकड़ने—फंसाने वाला), शौकरिक (सूअरों का शिकार करने वाला) और मत्स्यबंधक (मच्छीमार) होता है। ३७ ७. निषादस्वर वाला पुरुष चांडाल, वधिक, मुक्केबाज, गोघातक, चोर और इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे पाप करने वाला होता है। ३८ विवेचन- इन गाथाओं में व्यक्ति के हाव-भाव विलास, आचार-विचार-व्यवहार, कुल-शील-स्वभाव का बोध कराने में स्वर—वाग्व्यवहार के योगदान का संकेत किया गया है। बोलने मात्र से ही व्यक्ति के गुणावगुण का अनुमान लगाया जा सकता है। शिष्ट सरल जन प्रसादगुणयुक्त कोमल-कान्तपदावली का प्रयोग करते हैं, जबकि धूर्त, वंचक व्यक्तियों के बोलचाल में कर्णकटु, अप्रिय और भयोत्पादक शब्दों की बहुलता होती है एवं उनकी १-२. पाठान्तर रेवयसरमंता उ, हवंति दुह जीविणो । कुचेला य कुवित्ती य, चोरा चंडालमुट्ठिया ॥ णिसायसरमंता उ, होंति कलह कारगा । जंघाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा ॥ -अनुयोगद्वारवृत्ति, पृ. १२९
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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