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नामाधिकारनिरूपण
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प्रवृत्ति भी वाग्व्यवहार के अनुरूप ही होती है। सप्तस्वरों के ग्राम और उनकी मूर्च्छनाएँ
(६) एतेसि णं सत्तण्हं सराणं तयो गामा पण्णत्ता । तं जहा—सज्जग्गामे १ मज्झिमग्गामे २ गंधारग्गामे ३ ।
[२६०-६] इन सात स्वरों के तीन ग्राम कहे गये हैं। वे इस प्रकार१. षड्जग्राम, २. मध्यमग्राम, ३. गांधारग्राम। (७) सजग्गामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ । तं जहा
मंगी कोरव्वीया हरी य रयणी य सारकंता य ।
छट्ठी य सारसी नाम सुद्धसजा य सत्तमा ॥ ३९॥ [२६०-७] षड्जग्राम की सात मूर्च्छनाएं कही गई हैं। उनके नाम हैं१. मंगी, २. कौरवीया, ३. हरित, ४. रजनी, ५. सारकान्ता, ६. सारसी और ७. शुद्धषड्ज । ३९ (८) मज्झिमग्गामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ । तं जहा
उत्तरमंदा रयणी उत्तरा उत्तरायसा (ता) ।
अस्सोकंता य सोवीरा अभीरू भवति सत्तमा ॥ ४०॥ [२६०-८] मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाएं कही हैं। जैसे
१. उत्तरमंदा, २. रजनी, ३. उत्तरा, ४. उत्तरायशा अथवा उत्तरायता, ५. अश्वक्रान्ता, ६. सौवीरा, ७. अभिरुद्गता। ४० (९) गंधारग्गामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ । तं जहा—
नंदी य खुड्डिमा पूरिमा य चउत्थी य सुद्धगंधारा । - उत्तरगंधारा वि य पंचमिया हवइ मुच्छा उ ॥४१॥
सुठुत्तरमायामा सा छट्ठा नियमसो उ णायव्वा ।
अहउत्तरायता कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा ॥ ४२॥ [२६०-९] गांधारग्राम की सात मूर्छनाएं कही गई हैं। उनके नाम ये हैं
१. नन्दी, २. क्षुद्रिका, ३. पूरिमा, ४. शुद्धगांधारा, ५. उत्तरगांधारा, ६. सुष्ठतर-आयामा और ७. उत्तरायताकोटिमा। ४१-४२
(इस प्रकार से सात स्वरों के तीन ग्राम और उनकी सात-सात मूर्च्छनाओं के नाम जानने चाहिए।) विवेचन- सूत्रकार ने सप्तस्वरों के तीन ग्राम और प्रत्येक की मूर्च्छनाओं के नाम गिनाये हैं।
मूर्छनाओं के समुदाय को ग्राम कहते हैं । वे षड्ज आदि के भेद से तीन प्रकार के हैं। प्रत्येक ग्राम की सातसात मूर्च्छनाएं होने से सब मिलकर इक्कीस हैं । मूर्च्छना अर्थात् गायक का गीत के स्वरों में तल्लीन मूछित सा हो जाना।