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________________ नामाधिकारनिरूपण अजीवनिश्रित सप्तस्वर (४) सत्त सरा अजीवणिस्सिया पण्णत्ता । तं जहा सज्जं रवइ मुयंगो १ गोमुही रिसहं सरं २ 1 संखो रवइ गंधारं ३ मज्झिमं पुण झल्लरी ४ चउचलणपतिट्ठाणा गोहिया पंचमं सरं ५ । आडंबरो धेवइयं ६ महाभेरी य [२६०-४] अजीवनिश्रित सप्तस्वर इस प्रकार हैं१. मृदंग से षड्जस्वर निकलता है । २. गोमुखी वाद्य से ऋषभस्वर निकलता है । ३. शंख से गांधारस्वर निकलता है। ४. झालर से मध्यमस्वर निकलता है । ५. चार चरणों पर स्थित गोधिका से पंचमस्वर निकलता है । ६. आडंबर (नगाड़ा) से धैवतस्वर निकलता है। ७. महाभेरी से निषादस्वर निकलता है । ३०, ३१ ॥ ३० ॥ सत्तमं ७ ॥ ३१॥ विवेचन — सूत्रकार ने सप्तस्वरों की अभिव्यक्ति के साधनों के रूप में कुछ एक जीवों और अजीव पदार्थों के नामों का उल्लेख किया है कि अमुक द्वारा उस-उस प्रकार का स्वर निष्पन्न होता है । १७५ आशय को स्पष्ट करने के लिए उदाहृत जीवों और अजीवों के नाम उपलक्षण रूप होने से इन जैसे अन्यों का ग्रहण भी इनसे किया गया समझना चाहिए। कंठादि से अभिव्यक्त होने वाले स्वरों में तो जीवनिश्रितता स्वयंसिद्ध है और मृदंग आदि अजीव वस्तुओं में जीवव्यापार अपेक्षित है। मृदंग आदि द्वारा जनित स्वरों के नाभि, कंठ आदि से उत्पन्न होने रूप अर्थ घटित नहीं होता है तो भी उन वाद्यों से षड्ज स्वरों जैसे स्वर उत्पन्न होने से उन्हें मृदंग आदि अजीवों से निश्रित कहा जाता है। सप्तस्वरों के स्वरलक्षण - फल (५) एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता । तं जहा— सज्जेणं लहइ वित्तिं कयं च न विणस्सई । वत्थ गावो पुत्ता य मित्ता य नारीणं होति वल्लहो १ ॥ ३२॥ रिसहेणं तु एसजं सेणावच्चं धणाणि य । गंधमलंकार इत्थीओ सयणाणि य २ ॥ ३३ ॥ गंधारे गीतजुत्तिण्णा वज्जवित्ती कलाहिया । हवंति कइणो पण्णा जे अण्णे सत्थपारगा ३ ॥ ३४ ॥ मज्झिमसमंता उ हवंति वो । खायती पिवती देती मज्झिमस्सरमस्सिओ ४ ॥ ३५ ॥
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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