________________
नामाधिकारनिरूपण
१७१
क्षायिक सम्यक्त्व समझना चाहिए। क्षायिक सम्यक्त्व नारक, तिर्यंच और देव इन गतियों में तो पूर्वप्रतिपन्न जीव को और मनुष्यगति में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यभान को भी होता है। इसी कारण यह चतुर्थ भंग चारों गतियों में संभव है।
इस प्रकार चतु:संयोगी सान्निपातिकभावों की प्ररूपणा जानना चाहिए। अब अंतिम पंचसंयोगी सान्निपातिकभाव का निरूपण करते हैं। पंचसंयोगी सान्निपातिकभाव
२५८. तत्थ णं जे से एक्के पंचकसंजोगे से णं इमे—अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १ । __[२५८] पंचसंयोगज सान्निपातिकभाव का एक भंग इस प्रकार है—औदयिक-औपर्शमिक-क्षार्थिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव।
२५९. कतरे से नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने । से तं सन्निवाइए । से तं छण्णामे।
- [२५९ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ?
[२५९ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांत कषाय, क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक-औपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणमिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है।
इस प्रकार से सान्निपातिकभाव और साथ ही षड्नाम का वर्णन समाप्त हुआ।
विवेचन— इस सूत्र में पांच भावों के संयोग से निष्पन्न सान्निपातिकभाव का कथन करने के साथ षड्नाम की वक्तव्यता की समाप्ति का संकेत किया है।
इस पंचसंयोगज सान्निपातिकभाव में औदयिक आदि पारिणामिक भाव पर्यन्त पांचों भावों का समावेश हो जाता है। इनके अतिरिक्त अन्य भावों के न होने से यहां एक ही भंग बनता है। यह भंग क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर उपशमश्रेणी पर आरोहण करने वाले मनुष्य में पाया जाता है। इसी का संकेत करने के लिए सूत्र में मनुष्य, उपशांत कषाय आदि को उदाहृत किया है। जीव में प्राप्त सान्निपातिकभाव-निरूपण का सारांश
औदयिक आदि पांच मूल भावों के संयोग से निष्पन्न सान्निपातिकभाव के द्विकसंयोगी दस, त्रिकसंयोगी दस, चतुष्कसंयोगी पांच और पंचसंयोगी एक, कुल छब्बीस भंगों में से जीवों में सिर्फ द्विकसंयोगी एक, त्रिकसंयोगी दो, चतुष्कसंयोगी दो और पंचसंयोगी एक, इस प्रकार छह भंग पाये जाते हैं। शेष भंग प्ररूपणामात्र के लिए ही हैं।
जीवों में प्राप्त भंगों का कारण सहित स्पष्टीकरण इस प्रकार है१. क्षायिक और पारिणामिकभाव से निष्पन्न विकसंयोगी भंग सिद्ध जीवों में पाया जाता है। क्योंकि उनमें