SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० अनुयोगद्वारसूत्र [२५७-४ प्र.] भगवन् ! औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव किसे कहते हैं ? [२५७-४ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति, क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। ४ कतरे से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ५ । [२५७-५ प्र.] भगवन् ! औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप क्या है ? [२५७-५ उ.] आयुष्मन् ! औपशमिकभाव में उपशांत कषाय, क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव क स्वरूप है। ५ विवेचन— इन दो सूत्रों में चतुःसंयोगी सान्निपातिकभाव के पांच भंगों के नाम और उनके स्वरूप बतलाये स्वरूप बताने के प्रसंग में उदाहरणार्थ प्रयुक्त मनुष्यगति, क्षायिक सम्यक्त्व, इन्द्रियां, जीवत्व आदि उपलक्षण रूप होने से उस-उस भाव रूप में अन्यान्य गतियों आदि का भी ग्रहण समझ लेना चाहिए। इन चतु:संयोगी पांचों भंगों में पांचवें पारिणामिकभाव को छोड़ने और शेष चार भावों का संयोग करने पर प्रथम भंग, चौथे क्षायोपशमिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से दूसरा भंग, तीसरे क्षायिक भाव को छोड़कर बाकी के चार भावों के संयोग से तीसरा भंग, दूसरे औपशमिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से चौथा भंग और पहले औदयिकभाव को छोड़कर शेष चार भावों के संयोग से पांचवां भंग निष्पन्न जानना चाहिए। इन पांचों भंगों में से तृतीय और चतुर्थ ये दो भंग ही जीव में घटित होते हैं, शेष तीन नहीं। घटित होने वाले भंगों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न ततीय भंग नारक आदि चारों गतियों में होता है। क्योंकि विवक्षित गति औदयिकी है तथा प्रथम सम्यक्त्व के लाभकाल में उपशमभाव होने से और मनुष्यगति में उपशमश्रेणी में भी औपशमिक सम्यक्त्व होने से औपशमिकभाव है। इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव रूप हैं। इस प्रकार यह तृतीय भंग सर्व गतियों में पाया जाता है। ___ सूत्र में प्रयुक्त इस तृतीय भंग के उदाहरण रूप में 'उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया' पाठ इस बात को स्पष्ट करने के लिए है कि उपशमश्रेणी में मनुष्यत्व का उदय और कषायों का उपशम होता है। अथवा सूत्रोक्त पाठ उपलक्षण रूप होने से यथायोग्य गति आदि का ग्रहण समझ लेना चाहिए। औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिकभावों का संयोगज रूप चौथा भंग भी तृतीय भंग की तरह नरकादि चारों गतियों में संभव है। परन्तु विशेषता यह है कि तृतीय भंगोक्त उपशम सम्यक्त्व के स्थान पर यहां
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy