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________________ नामाधिकारनिरूपण १६७ __ [२५५-६ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिक, इन्द्रियां क्षायोपशमिक और जीवत्व पारिणामिक, यह औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप जानना चाहिए। ६ कतरे से णामे उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई, एस णे से णामे उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ७ । [२५५-७ प्र.] भगवन् ! औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-७ उ.] आयुष्मन् ! उपशांत कषाय औपशमिकभाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव, इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव, यह औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव है। ७ कतरे से णामे उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ८ । [२५५-८ प्र.] भगवन् ! औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-८ उ.] आयुष्मन् ! उपशांत कषाय औपशमिक भाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव, जीवत्व पारिणामिकभाव, यह औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप जानना चाहिए। ८ कतरे से णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खओवसमियाई इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ९ । [२५५-९ प्र.] भगवन् ! औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-९ उ.] आयुष्मन् ! उपशांत कषाय औपशमिकभाव, इन्द्रियां क्षायोपशमिक और जीवत्व पारिणामिक, इस प्रकार से यह औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप जानना चाहिए।९ ___ कतरे से णामे खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे खइए खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १० । [२५५-१० प्र.] भगवन् ! क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-१० उ.] आयुष्मन् ! क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव, इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव, इस प्रकार का क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। १० विवेचन— प्रस्तुत दो सूत्रों द्वारा तीन भावों के संयोग से निष्पन्न दस सान्निपातिकभावों के भंग और उनके स्वरूप का निरूपण किया है। त्रिकसंयोगज भावों के औदयिक और औपशमिक इन दो भावों को परिपाटी से निक्षिप्त करके अवशिष्ट क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीन भावों में से एक-एक भाव का उनके साथ संयोग करने पर प्रथम तीन भाव निष्पन्न हुए हैं। उनमें भी पहला औदयिक-औपशमिक-क्षायिकसान्निपातिकभाव इस प्रकार घटित करना
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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