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________________ १६६ अनुयोगद्वारसूत्र क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव,९.औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव,१०.क्षायिक-क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नभाव। २५५. कतरे से णामे उदइए उवसमिए खयनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खयनिप्पन्ने १ । [२५५-१ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-१ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिकभाव, उपशांतकषाय औपशमिकभाव और क्षायिकसम्यक्त्व क्षायिकभाव, यह औदयिक-औपशमिक-क्षायिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है। १ कतरे से णामे उदइए उवसमिए खओवसमियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खयोवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने २ । [२५५-२ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-२ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिकभाव, उपशांतकषाय औपशमिक और इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव, इस प्रकार औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप जानना चाहिए। २ कयरे से णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ३ । [२५५-३ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-३ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिक, उपशांतकषाय औपशमिक और जीवत्व पारिणामिक भाव, इस प्रकार से औदयिक-औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है। ३ ___कयरे से णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ४। [२५५-४ प्र.] भगवन् ! औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-४ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिक, क्षयक सम्यक्त्व क्षायिक भाव और इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव, यह औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। ४ कतरे से णामे उदइए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ५ । [२५५-५ प्र.] भगवन् ! औदयिक-क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२५५-५ उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति औदयिकभाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव, इस प्रकार का औदयिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। ५ कतरे से णामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खयोवसमियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ६ । [२५५-६ प्र.] भगवन् ! औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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