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________________ नामाधिकारनिरूपण १६५ प्रश्न – भगवन् ! क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावसंयोगज का क्या स्वरूप है ? उत्तर- आयुष्मन् ! क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व को ग्रहण किया जाये तो यह क्षायोपशमिक-पारिणामिकभाव का स्वरूप है। १० इस प्रकार से यह द्विकसंयोगी सान्निपातिक भाव के दस भंगों का स्वरूप है। विवेचन- इन दो सूत्रों में से पहले में द्विकसंयोगी दस सान्निपातिकभावों के नाम और दूसरे में 'कतरे से नामे....' प्रश्न और 'एस णं से णामे...' उत्तर द्वारा उन-उन भावों का उदाहरण सहित स्वरूप स्पष्ट किया है। इन दस संयोगज नामों में औदयिक के साथ उत्तरवर्ती औपशामिक आदि चार भावों में से एक-एक को जोड़ने से चार भंग औपशमिक के साथ, क्षायिक आदि तीन भावों के संयोग से तीन भंग, क्षायिक के साथ क्षायोपशमिक आदि दो भावों के संयोग से दो भंग और क्षायोपशमिक के साथ अंतिम पारिणामिकभाव को जोड़ने से एक भंग बनता है। कुल मिलाकर इनका जोड़ (४+३+२+१ = १०) दस है। ___ इन दस भंगों की स्वरूपव्याख्या के प्रसंग में उल्लिखित मनुष्य, उपशांतकषय, क्षायिक सम्यक्त्व आदि नाम उपलक्षण रूप हैं। अतः इनमें अन्य जिन-जिन कर्मप्रकृतियों की उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम रूप स्थिति बनती हो उन सबका ग्रहण कर लेना चाहिए। ___ यद्यपि द्विकसंयोगी-सान्निपातिकभाव के दस भंग बतलाये हैं, लेकिन इनमें से मात्र क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न एक नौवां भंग ही सिद्ध भगवान् की अपेक्षा घटित होता है। सिद्ध भगवान् में क्षायिक सम्यक्त्व और पारिणामिकभाव रूप जीवत्व है। इसके अतिरिक्त शेष नौ भंग केवल प्ररूपणामात्र ही हैं। क्योंकि सिद्धों के सिवाय सभी संसारी जीवों में कम से कम यह तीन भाव तो होते ही हैं—औदयिक वह गति जिसमें वे हैं, क्षायोपशमिक यथायोग्य इन्द्रिय और पारिणामिक—जीवत्व। __ इस प्रकार से द्विकसंयोगी दस सान्निपातिक भावों की वक्तव्यता जानना चाहिए। त्रिकसंयोगज सान्निपातिकभाव ____२५४. तत्थ णं जे ते दस तिगसंजोगा ते णं इमे—अत्थि णामे उदइए उवसमिए खयनिप्पन्ने १, अस्थि णामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने २, अत्थि णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ३, अस्थि णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ४, अत्थि णामे उदइए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ५, अत्थि णामे उदइए खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ६, अत्थि णामे उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ७, अत्थि णामे उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ८, अस्थि णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ९, अस्थि णामे खइए खओवसमिए पारिणमियनिप्पन्ने १० । _ [२५४] वहां (सान्निपातिकभाव में) त्रिकसंयोगज दस भंग इस प्रकार हैं-१. औदयिक-औपशमिकक्षायिकनिष्पन्नभाव। २. औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव, ३. औदयिक-औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, ४. औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव, ५. औदयिक-क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, ६. औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव,७. औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव, ८. औपशमिक
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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