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अनुयोगद्वारसूत्र क्षयोपशम ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इन चार घाति कर्मों का ही होता है, अन्य कर्मों का नहीं, जबकि करणसाध्य उपशम सिर्फ मोहनीयकर्म का ही होता है।
इस प्रकार से क्षायोपशमिकभाव की वक्तव्यता जानना चाहिए। पारिणामिकभाव
२४८. से किं तं पारिणामिए ? पारिणामिए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—सादिपारिणामिए य १ अणादिपारिणामिए य २ । [२४८ प्र.] भगवन् ! पारिणामिकभाव किसे कहते हैं ?
[२४८ उ.] आयुष्मन् ! पारिणामिकभाव के दो प्रकार हैं। यथा—१. सादि-पारिणामिक, २. अनादिपारिणामिक।
२४९. से किं तं सादिपारिणामिए ? सादिपारिणामिए अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा
जुण्णसुरा जुण्णगुलो जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव ।
अब्भा य अब्भरुक्खा संझा गंधव्वणगरा य ॥ २४॥ उक्कावाया दिसादाघा गजियं विजू णिग्घाया जूवया जक्खादित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदया पडिसूरया इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा णगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे जाव आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेजे अणुत्तरोववाइया ईसीपब्भारा परमाणुपोग्गले दुपदेसिए जाव अणंतपदेसिए । से तं सादिपारिणामिए ।
[२४९ प्र.] भगवन् ! सादि-पारिणामिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२४९ उ.] आयुष्मन् ! सादि-पारिणामिकभाव के अनेक प्रकार हैं। जैसेजीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गंधर्वनगर ॥ १२४॥ तथा
उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष (भरतादि क्षेत्र), वर्षधर (हिमवानादि पर्वत), ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा, सौधर्म, ईशान, यावत् आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक देवविमान, ईषत्प्राग्भार पृथ्वी, परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध सादि-पारिणामिकभाव रूप हैं।
२५०. से किं अणादिपारिणामिए ?
अणादिपारिणामिए धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए लोए अलोए भवसिद्धिया अभवसिद्धिया । से तं अणादिपारिणामिए । से