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________________ १५१ नामांधिकारनिरूपण औदयिकभाव २३४. से किं तं उदइए ? . उदइए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—उदए य १ उदयनिष्फण्णे य २ । [२३४ प्र.] भगवन् ! औदयिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२३४ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव दो प्रकार का है। जैसे—१. औदयिक और २. उदयनिष्पन्न । २३५. से किं तं उदए ? उदए अट्ठण्हं कम्मपगडीणं उदएणं । से तं उदए । [२३५ प्र.] भगवन् ! औदयिक का क्या स्वरूप है ? [२३५ उ.] आयुष्मन् ! ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। २३६. से किं तं उदयनिष्फण्णे ? उदयनिप्फण्णे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—जीवोदयनिप्फन्ने य १ अजीवोदयनिप्फन्ने य २ । [२३६ प्र.] भगवन् ! उदयनिष्पन्न औदयिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२३६ उ.] आयुष्मन् ! उदयनिष्पन्न औदयिकभाव के दो प्रकार हैं—१. जीवोदयनिष्पन्न, २. अजीवोदयनिष्पन्न। विवेचन- ये तीन सूत्र औदयिकभाव निरूपण की भूमिका हैं। ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का उदय और कर्मों के उदय से होने वाला भाव-पर्याय औदयिकभाव है। इन दोनों भेदों में परस्पर कार्यकारणभाव है। ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों का उदय होने पर तज्जन्य अवस्थायें उत्पन्न होने से कर्मोदय कारण है और तज्जन्य अवस्थायें कार्य हैं एवं उन-उन अवस्थाओं के होने पर विपाकोन्मुखी कर्मों का उदय होता है, इस दृष्टि से अवस्थायें कारण हैं और विपाकोन्मुख कर्मोदय कार्य है। ___उदयनिष्पन्न के जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न भेद मानने का कारण यह है कि कर्मोदय के जीव और अजीव यह दो माध्यम हैं। अतः कर्मोदयजन्य जो अवस्थायें साक्षात् जीव को प्रभावित करती हैं अथवा कर्म के उदय से जो पर्यायें जीव में निष्पन्न होती हैं, वे जीवोदयनिष्पन्न और अजीव के माध्यम से जिन अवस्थाओं का उदय होता है, वे अजीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव हैं। जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव २३७. से किं तं जीवोदयनिष्फन्ने ? जीवोदयनिष्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा—णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए जाव वणस्सइकाइए, तसकाइए, कोहकसायी जाव लोहकसायी, इत्थीवेदए पुरिसवेदए णपुंसगवेदए, कण्हलेसे एवं नील० काउ० तेउ० पम्ह० सुक्कलेसे, मिच्छाइिट्ठी अविरए अण्णाणी आहारए छउमत्थे सजोगी संसारत्थे असिद्धे । से तं जीवोदयनिप्फन्ने । [२३७ प्र.] भगवन् ! जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव का क्या स्वरूप है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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