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नामाधिकारनिरूपण
१४९ डित्थ, डवित्थ आदि अव्युत्पन्न माने गये शब्द भी शाकटायन के मत से व्युत्पन्न हैं और उनका इन आगम आदि चार नामों में से किसी न किसी एक में समावेश हो जाता है। यह चतुर्नाम की व्याख्या है। पंचनाम
२३२. से किं तं पंचनामे ?
पंचनामे पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा—नामिकं १ नैपातिकं २ आख्यातिकं ३ औपसर्गिकं ४ मिश्रं ५ च । अश्व इति नामिकम्, खल्विति नैपातिकम्, धावतीत्याख्यातिकम्, परि इत्यौपसर्गिकम्, संयत इति मिश्रम् । से तं पंचनामे ।
[२३२ प्र.] भगवन् ! पंचनाम का क्या स्वरूप है ?
[२३२ उ.] आयुष्मन् ! पंचनाम पांच प्रकार का है। वे पांच प्रकार हैं-१. नामिक, २. नैपातिक, ३. आख्यातिक, ४. औपसर्गिक और ५. मिश्र। जैसे—'अश्व' यह नामिकनाम का, खलु' नैपातिकनाम का, 'धावति' आख्यातिकनाम का, 'परि' औपसर्गिक और 'संयत' यह मिश्रनाम का उदाहरण है।
यह पंचनाम का स्वरूप है।
विवेचन— सूत्र में पंचनाम के पांच प्रकारों का निर्देश किया है। इन नामिक आदि पांचों में समस्त शब्दों का संग्रह हो जाने से पंचनाम कहे जाते हैं। क्योंकि शब्द या तो किसी वस्तु का वाचक होता है अथवा निपात से, क्रिया की मुख्यता से, उपसर्गों से, संज्ञा (नाम) के साथ उपसर्ग के संयोग से अपने अभिधेय-वाच्य का बोध कराता है। जैसे—'अश्व' शब्द वस्तु का वाचक होने से नामिक है। 'खलु' शब्द निपातों में पठित होने से नैपातिक है। क्रियाप्रधान होने से 'धावति' यह तिङ्गन्त पद आख्यातिक है। 'परि' यह प्र, परा, अप्, सम् आदि उपसर्गों में पठित होने से औपसर्गिक है तथा 'संयतः' यह सुबन्त पद सम् उपसर्ग और यत् धातु इन दोनों के संयोग से बना होने के कारण मिश्र है।
इस प्रकार से यह पंचनाम का स्वरूप है। छहनाम
२३३. से किं तं छनामे ?
छनामे छव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—उदइए १ उवसमिए २ खइए ३ खओवसमिए ४ पारिणामिए ५ सन्निवातिए ६ ।
[२३३ प्र.] भगवन् ! छहनाम का क्या स्वरूप है ?
[२३३ उ.] आयुष्मन् ! छहनाम के छह प्रकार कहें हैं। वे ये हैं—१. औदयिक, २. औपशमिक, ३. क्षायिक, ४. क्षायोपशमिक, ५. पारिणामिक और ६. सान्निपातिक।
विवेचन— यहां छहनाम के प्रकरण में नाम और नामवाले अर्थों में अभेदोपचार करके छह भावों की प्ररूपणा की है।
सूत्रोक्त उदइए-औदयिक आदि से औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव,