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________________ नामाधिकारनिरूपण १४७ आकारान्त पुरुष नाम का उदाहरण राया (राजा) है। ईकारान्त का उदाहरण गिरी (गिरि) तथा सिहरी (शिखरी) है। ऊकारान्त का उदाहरण विण्हू (विष्णु) और ओकारान्त का दुमो (द्रुमो-वृक्ष) है। ॥ २१॥ स्त्रीनाम में 'माला' यह पद आकारान्त का, सिरी (श्री) और लच्छी (लक्ष्मी) पद ईकारान्त, जम्बू (जामुन वृक्ष), वहू (वधू) ऊकारान्त नारी जाति के (नामों के) उदाहरण हैं। ॥ २२॥ धन्नं (धान्य) यह प्राकृतपद अंकारान्त नपुंसक नाम का उदाहरण है। अच्छि (अक्षि) यह इंकारान्त नपुंसकनाम का तथा पीलुं (पीलु-वृक्ष विशेष) महुँ (मधु) ये उंकारान्त नपुंसकनाम के पद हैं। ॥ २३॥ इस प्रकार यह त्रिनाम का स्वरूप है। विवेचन- सूत्र में प्रकारान्तर से त्रिनाम का स्वरूप स्पष्ट किया है। द्रव्यादि सम्बन्धी नाम स्त्री, पुरुष और नपुंसक लिंग के भेद से तीन प्रकार के हैं और इन तीनों लिंगों का बोध उन-उन नामों के अन्त में आगत आकारादि वर्णों द्वारा होता है। प्राकृत भाषा की तरह संस्कृत में भी लिंगापेक्षया शब्दों के तीन प्रकार हैं, लेकिन हिन्दी में पुरुष और स्त्री लिंग शब्द ही माने गये हैं। अतः हिन्दी में त्रिनामता नहीं है। . इस प्रकार व्याकरणशास्त्र की दृष्टि से लिंगानुसार यह त्रिनाम का स्वरूप जानना चाहिए। चतुर्नाम २२७. से किं तं चतुणामे ? चतुणामे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमेणं १ लोवेणं २ पयईए ३ विगारेणं ४ । [२२७ प्र.] भगवन् ! चतुर्नाम का क्या स्वरूप है ? [२२७ उ.] आयुष्मन् ! चतुर्नाम के चार प्रकार हैं। यथा—१. आगमनिष्पन्ननाम, २. लोपनिष्पन्ननाम, ३. प्रकृतिनिष्पन्ननाम, ४. विकारनिष्पन्ननाम। २२८. से किं तं आगमेणं ? आगमेणं पद्मानि पयांसि कुण्डानि । से तं आगमेणं । [२२८ प्र.] भगवन् ! आगमनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२२८ उ.] आयुष्मन् ! पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि ये सब आंगमनिष्पन्ननाम हैं। २२९. से किं तं लोवेणं ? लोवेणं ते अत्र तेऽत्र, पटो अत्र पटोऽत्र, घटो अत्र घटोऽत्र, रथो अत्र रथोऽत्र । से तं लोवेणं। [२२९ प्र.] भगवन् ! लोपनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२२९ उ.] आयुष्मन् ! ते+अत्र तेऽत्र, पटो+अत्र—पटोऽत्र, घटो+अत्र—घटोऽत्र, रथो+अत्र—रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम हैं। २३०. से किं तं पगतीए ? अग्नी एतौ, पटू इमौ, शाले एते, माले इमे । से तं पगतीए ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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