________________
नामाधिकारनिरूपण
१४५ भिन्न-भिन्न आकृतियां सम्भव हैं, उनका इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाने से पांच से अधिक मौलिक संस्थान सम्भव नहीं
इस प्रकार से गुणनाम की वक्तव्यता का आशय जानना चाहिए। पर्यायनाम
२२५. से किं तं पज्जवनामे ?
पज्जवनामे अणेगविहे पणत्ते । तं जहा—एगगुणकालए दुगुणकालए जाव अणंतगुणकालए, एगगुणनीलए दुगुणनीलए जाव अणंतगुणनीलए, एवं लोहिय-हालिद्द-सुक्किला वि भाणियव्वा ।
एगगुणसुरभिगंधे दुगुणसुरभिगंधे जाव अणंतगुणसुरभिगंधे एवं दुरभिगंधो वि भाणियव्वो । एगगुणतित्ते दुगुणतित्ते जाव अणंतगुणतित्ते, एवं कडुय-कसाय-अंबिल-महुरा वि भाणियव्वा।
एगगुणकक्खडे दुगुणकक्खडे जाव अणंतगुणकक्खडे, एवं मउय-गरुय-लहुय-सीत-उसिणणिद्ध-लुक्खा वि भाणियव्वा । से तं पजवणामे ।
[२२५ प्र.] भगवन् ! पर्यायनाम का क्या स्वरूप है ?
[२२५ उ.] आयुष्मन् ! पर्यायनाम के अनेक प्रकार हैं। यथा—एकगुण (अंश) काला, द्विगुणकाला यावत् अनन्तगुणकाला, एकगुणनीला, द्विगुणनीला यावत् अनन्तगुणनीला तथा इसी प्रकार लोहित (रक्त), हारिद्र (पीत) और शुक्लवर्ण की पर्यायों के नाम भी समझना चाहिए।
___ एकगुणसुरभिगंध, द्विगुणसुरभिगंध यावत् अनन्तगुणसुरभिगंध, इसी प्रकार दुरभिगंध के विषय में भी कहना चाहिए।
एकगुणतिक्त, द्विगुणतिक्त यावत् अनन्तगुणतिक्त, इसी प्रकार कटुक, कषाय, अम्ल एवं मधुर रस की पर्यायों के लिए भी कहना चाहिए।
एकगुणकर्कश, द्विगुणकर्कश यावत् अनन्तगुणकर्कश, इसी प्रकार मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श की पर्यायों की वक्तव्यता है।
यह पर्यायनाम का स्वरूप है।
विवेचनसूत्र में पर्यायनाम की व्याख्या की है। पर्याय का स्वरूप पहले बताया जा चुका है। पर्याय द्रव्य के समान सर्वदा स्थायी ध्रुव रूप न होकर उत्पत्ति-विनाश रूपों के माध्यम से परिवर्तित होती रहती है।
___ प्रस्तुत प्रसंग में गुणों को माध्यम बनाकर पर्याय का स्वरूप बताया है। पर्याय एकगुण (अंश) कृष्ण आदि रूप हैं। अर्थात् जिस परमाणु आदि द्रव्य में कृष्णगुण का एक अंश हो वह परमाणु आदि द्रव्य एकगुणकृष्णवर्ण आदि वाला है। इसी प्रकार दो आदि अंश से लेकर अनन्त अंशों तक के लिए जानना चाहिए। ये सभी अंश पर्याय
हैं।
पुद्गलास्तिकाय के दो भेद हैं—अणु और स्कन्ध । इनमें से स्कन्धों में तो पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श कुल मिलाकर बीस गुण और परमाणुओं में कर्कश, मृदु, गुरु, लघु ये चार स्पर्श नहीं होने से कुल सोलह गुण पाये जाते हैं तथा एक परमाणु में शेष रहे शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष इन चार स्पर्शों में से भी एक समय में