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________________ अनुयोगद्वारसूत्र [२२३ उ.] आयुष्मन् ! स्पर्शनाम के आठ प्रकार कहे हैं। उनके नाम हैं—१. कर्कशस्पर्शनाम, २. मृदुस्पर्शनाम, ३. गुरुस्पर्शनाम, ४. लघुस्पर्शनाम, ५. शीतस्पर्शनाम, ६. उष्णस्पर्शनाम, ७. स्निग्धस्पर्शनाम, ८. रूक्षस्पर्शनाम । यह स्पर्शनाम का स्वरूप है। १४४ विवेचन — सूत्र में स्पर्शनाम के आठ प्रकारों का उल्लेख किया है। इन आठ प्रकारों में से प्रत्येक के साथ नाम शब्द जोड़ देने पर पूरा नाम हो जाता है। जैसे कर्कशस्पर्शनाम, मृदुस्पर्शनाम यावत् रूक्षस्पर्शनाम। पाषाण आदि में कर्कश —— खुरदरास्पर्श रहता है। कोमल स्पर्श मृदुस्पर्श कहलाता है। यह वेत्र आदि में पाया जाता है। ज़ो अधःपतन का कारण हो और लोहे के गोलक आदि में पाया जाता है, वह गुरुस्पर्श है। जो स्पर्श प्रायः ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् गमन में कारण हो और अर्कतूल (आक की रुई) आदि में पाया जाता है, वह लघुस्पर्श है। शीतलता — ठंडेपन का अनुभव कराने में जो हेतु है तथा बर्फ आदि में पाया जाता है, वह शीतस्पर्श है। जो उष्णता — गर्मी का बोधक; आहारादि के पकाने का कारण हो एवं अग्नि आदि में रहता है वह उष्णस्पर्श है। परस्पर मिले हुए पुद्गलद्रव्यों के संश्लिष्ट होने का जो कारण हो और तेलादि पदार्थों में पाया जाये, वह स्निग्धस्पर्श है। जो पुद्गल द्रव्यों के परस्पर अबन्ध का कारण हो, ऐसा भस्मादि का स्पर्श रूक्षस्पर्श है। इन स्पर्शों का जो नाम वह तत्तत् नाम वाला स्पर्शनाम समझना चाहिए। स्पर्श के उक्त आठ भेदों के संयोगज स्पर्शों का भी इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाने से उनका पृथक् निर्देश नहीं किया है। संस्थाननाम २२४. से किं तं संठाणणामे ? संठाणणामे पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा —— परिमंडलसंठाणणामे ९ वट्टसंठाणणामे २ तंससंठाणणामे ३ चउरंसठाणणामे ४ आयतसंठाणणामे ५ । से तं संठाणणामे । से तं गुणणामे । [२२४ प्र.] भगवन् ! संस्थाननाम का क्या स्वरूप है ? [२२४ उ.] आयुष्मन् ! संस्थाननाम के पांच प्रकार कहे गये हैं। यथा- १. परिमण्डलसंस्थानाम, २. वृत्तसंस्थाननाम, ३. त्र्यस्रसंस्थाननाम, ४. चतुरस्रसंस्थाननाम, ५. आयतसंस्थाननाम। यह संस्थाननाम का स्वरूप है। इस प्रकार से यह गुणनाम की व्याख्या समाप्त हुई जानना चाहिए। विवेचन—–— सूत्र में संस्थाननाम के भेदों को बतलाकर गुणनाम की वक्तव्यता की समाप्ति की सूचना दी है। संस्थान के पांच भेदों का स्वरूप प्रसिद्ध है। जो थाली, सूर्य या चन्द्रमण्डल के समान गोल हो, बीच में किंचिन्मात्र भी खाली स्थान न हो, ऐसा संस्थान परिमण्डलसंस्थान कहलाता है। जबकि वृत्तसंस्थान चूड़ी के समान (बीच में खाली) गोल होता है। तीन कोण (कोने) वाले संस्थान को यत्र त्रिभुज या तिकोना संस्थान कहते हैं । तीनों भुजाओं की लम्बाई चौड़ाई की भिन्नता से यह संस्थान अनेक प्रकार का हो सकता है। चतुरस्रसंस्थान में चारों कोण एवं लम्बाई-चौड़ाई समान होती है, जबकि आयतसंस्थान में चारों कोण समान होने पर भी लम्बाई अधिक और चौड़ाई कम होती है। इस प्रकार आकारों की भिन्न-भिन्नरूपता से संस्थाननाम के मुख्य पांच भेद हैं। इनके सिवाय और जो भी
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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