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________________ १४२ अनुयोगद्वारसूत्र संठाणणामे ५ । [२१९ प्र.] भगवन् ! गुणनाम का क्या स्वरूप है ? [२१९ उ.] आयुष्मन् ! गुणनाम के पांच प्रकार कहे हैं। जिनके नाम हैं—१. वर्णनाम, २. गंधनाम, ३. रसनाम, ४. स्पर्शनाम, ५. संस्थाननाम। विवेचन— सूत्र में बताए गए गुणनाम के पांचों भेद पुद्गलद्रव्य में पाये जाते हैं। यद्यपि धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों के अपने-अपने गुण हैं, परन्तु पुद्गलद्रव्य के सिवाय शेष द्रव्यों के अमूर्त होने से उनके गुण भी अमूर्त हैं। इस कारण संभवतः उनका उल्लेख नहीं किया गया है। इन वर्णनाम आदि के लक्षण इस प्रकार हैं वर्णनाम— जिसके द्वारा वस्तु अलंकृत, अनुरंजित की जाये उसे वर्ण कहते हैं। इस वर्ण का नाम वर्णनाम है। वर्ण चक्षुरिन्द्रिय का विषय है। गंधनाम- जो सूंघा जाये वह गंध है। यह घ्राणेन्द्रिय का विषय है। इस गंध के नाम को गंधनाम कहते हैं। रसनाम- जो चखा जाता है वह रस है। यह रसनेन्द्रिय का विषय है। रस का जो नाम वह रसनाम है। स्पर्शनाम – जो स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा स्पर्श करने पर जाना जाए वह स्पर्श है और इस स्पर्श का नाम स्पर्शनाम संस्थाननाम- आकार, आकृति को संस्थान कहते हैं। इस संस्थान के नाम को संस्थाननाम कहते हैं। गुणनाम के इन पांचों भेदों का वर्णन इस प्रकार हैवर्णनाम २२०. से किं तं वण्णणामे ? वण्णनामे पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा—कालवण्णनामे १ नीलवण्णनामे २ लोहियवण्णनामे ३ हालिद्दवण्णनामे ४ सुक्किलवण्णनामे ५ । से तं वण्णनामे । [२२० प्र.] भगवन् ! वर्णनाम का क्या स्वरूप है ? [२२० उ.] आयुष्मन् ! वर्णनाम के पांच भेद हैं। वे इस प्रकार—१. कृष्णवर्णनाम, २. नीलवर्णनाम, ३. लोहित (रक्त) वर्णनाम, ४. हारिद्र (पीत) वर्णनाम, ५. शुक्लवर्णनाम। यह वर्णनाम का स्वरूप है। विवेचन- सूत्र में वर्णनाम के पांच मूल भेदों के नाम बताये हैं। काले, पीले, नीले आदि वर्ण (रंग) के स्वरूप को सभी जानते हैं। कत्थई, धूसर आदि और भी वर्ण के जो अनेक प्रकार हैं, वे इन कृष्ण आदि पांच मौलिक वर्गों के संयोग से निष्पन्न होने के कारण स्वतन्त्र वर्ण नहीं हैं। इसलिए उनका पृथक् उल्लेख नहीं किया है। गंधनाम २२१. से किं तं गंधनामे ? गंधनामे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—सुरभिगंधनामे य १ दुरभिगंधनामे २ । से तं गंधनामे। [२२१ प्र.] भगवन् ! गंधनाम का क्या स्वरूप है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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