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________________ नामाधिकारनिरूपण १३९ महासुक्कए सहस्सारए आणयए पाणयए आरणए अच्चुतए । एतेसिं पि अविसेसिय-विसेसिय-पजत्तय-अपजत्तयभेदा भाणियव्वा । [२१६-१६] यदि वैमानिक देवपद को अविशेषित नाम माना जाये तो उसके कल्पोपपन्न और कल्पातीत यह दो प्रकार विशेषित नाम हैं। कल्पोपपन्न को अविशेषित नाम मानने पर सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत विमानवासी देव नाम विशेषित नाम रूप हैं। यदि इनमें से प्रत्येक को अविशेषित नाम माना जाये तो उनके पर्याप्त, अपर्याप्त रूप भेद विशेषित नाम कहलायेंगे। (१७) अविसेसिए कप्पातीतए, विसेसिए गेवेज्जए य अणुत्तरोववाइए य । अविसेसिए गेवेज्जए, विसेसिए हेट्ठिमगेवेजए मज्झिमगेवेज्जए उवरिमगेवेजए । अविसेसएि हेट्ठिमगेवेज्जए, विसेसिए हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज्जए हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जए हेट्ठिमउवरिमगेवेजए । अविसेसिए मज्झिमगेवेजए, विसेसिए मज्झिमहेट्ठिमगेवेजए मज्झिममज्झिमगेवेजए मज्झिमउवरिमगेवेज्जए । - अविसेसिए उवरिमगेवेजए, विसेसिए उवरिमहेट्ठिमगेवेजए उवरिममज्झिमगेवेजए उवरिमउवरिमगेवेज्जए । एतेसिं पि सव्वेसिं अविसेसिय-विसेसिय-पजत्तय-अपजत्तयभेदा भाणियव्वा । । _ [२१६-१७] यदि कल्पातीत को अविशेषित नाम माना जाये तो ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरोपपातिक देव विशेषित नाम हो जाएंगे। ग्रैवयकवासी को अविशेषित नाम मानने पर अधस्तनौवेयक, मध्यमग्रैवेयक, उपरितनग्रैवेयक ये नाम विशेषित नाम रूप होंगे। जब अधस्तनौवेयक को अविशेषित नाम माना जायेगा तब अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक, अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक, अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक नाम विशेषित नाम कहलायेंगे। अविशेषित नाम के रूप में मध्यमग्रैवेयक को मानने पर मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक, मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक, मध्यम-उपरिम ग्रैवेयक नाम विशेषित नाम होंगे। यदि उपरिम ग्रैवेयक को अविशेषित नाम माना जाए तो उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयक, उपरिम-मध्यम ग्रैवेयक, उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक ये नाम विशेषित नाम कहलायेंगे। इन सबको भी अविशेषित नाम माना जाये तो उनके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम कहलायेंगे। (१८) अविसेसिए अणुत्तरोववाइए, विसेसिए विजयए वेजयंतए जयंतए अपराजियए सव्वट्ठसिद्धए । - एतेसिं पि सव्वेसिं अविसेसिय-विसेसिय-पजत्तय-अपज्जत्तयभेदा भाणियव्वा ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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