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________________ १३४ अनुयोगद्वारसूत्र जीवनामे । [२१४ प्र.] भगवन् ! जीवनाम का क्या स्वरूप है ? [२१४ उ.] आयुष्मन् ! जीवनाम के अनेक प्रकार कहे गये हैं। जैसे—देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त इत्यादि। यह जीवनाम का स्वरूप है। २१५. से किं तं अजीवनामे ? अजीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा घडो पडो कडो रहो । से तं अजीवनामे । [२१५ प्र.] भगवन् ! अजीवनाम का क्या स्वरूप है ? [२१५ उ.] आयुष्मन् ! अजीवनाम भी अनेक प्रकार के हैं। यथा—घट, पट, कट, रथ इत्यादि। यह अजीवनाम है। विवेचन— नाम के द्वारा वाच्य पदार्थ दो प्रकार के हैं—जीव और अजीव। जिसमें चेतना पाई जाती है उसे जीव कहते हैं। अथवा तीनों कालों में इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास रूप द्रव्यप्राणों तथा ज्ञान, दर्शन आदि भावप्राणों से जो जीता था, जीता है और जीवित रहेगा वह जीव है। जिसमें जीव का गुण धर्म, स्वभाव नहीं पाया जाता है उसे अजीव कहते हैं। ' यह दोनों प्रकार के पदार्थ लोक में सदैव पाये जाते हैं । अतः लोकव्यवहार चलाने के लिए उनकी जो पृथक्पृथक् संज्ञाएं निर्धारित की जाती हैं, उनका द्विनाम में अन्तर्भाव कर लिया जाता है। किन्तु जीव और अजीव कहने मात्र से लोक-व्यवहार नहीं चलता है। क्योंकि एक शब्द से इष्ट अर्थ का ग्रहण और अनिष्ट का परिहार नहीं किया जा सकता है। तथा ये जीव और अजीव पदार्थ अनेक हैं। अतः उन सब का बोध कराने के लिए प्रकारान्तर से पुनः द्विनाम का निरूपण करते हैं। २१६. (१) अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—विसेसिए य १ अविसेसिए य २ ।। [२१६-१] अथवा अपेक्षादृष्टि से द्विनाम के और भी दो प्रकार हैं। यथा—१. विशेषित और २. अविशेषित। विवेचन— सूत्र में द्विनाम का एक और रूप स्पष्ट किया है। अविशेषित-अभेद-सामान्य और विशेषितभेद-विशिष्ट की अपेक्षा भी द्विनाम के दो प्रकार हैं। इन दो प्रकारों के होने का कारण यह है— उत्तरापेक्षया पूर्व अविशेष और भेदप्रधान होने से उत्तर विशेष है। जो निम्नलिखित सूत्रों से स्पष्ट है (२.) अविसेसिए दव्वे, विसेसिए जीवदव्वे य अजीवदव्वे य । [२१६-२] द्रव्य यह अविशेषित नाम है और जीवद्रव्य एवं अजीवद्रव्य ये विशेषित नाम हैं। (३) अविसेसिए जीवदव्वे, विसेसिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे । [२१६-३] जीवद्रव्य को अविशेषित नाम माने जाने पर नारक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ये विशेषित नाम हैं। (४) अविसेसिए णेरइए, विसेसिए रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमाए तमतमाए । अविसेसिए रयणप्पभापुढविणेरइए, विसेसिए पजत्तए य अपज्जत्तए
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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