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________________ नामाधिकारनिरूपण १३३ २.द्विनाम २१०. से किं तं दुणामे ? दुणामे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—एगक्खरिए १ अणेगक्खरिए य । [२१० प्र.] भगवन् ! द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [२१० उ.] आयुष्मन् ! द्विनाम के दो प्रकार हैं—१. एकाक्षरिक और २. अनेकाक्षरिक। २११. से किं तं एगक्खरिए ? एगक्खरिए अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा हीः श्रीः धीः स्त्री । से तं एगक्खरिए । [२११ प्र.] भगवन् ! एकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [२११ उ.] आयुष्मन् ! एकाक्षरिक द्विनाम के अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री (लज्जा अथवा देवता विशेष), श्री (लक्ष्मी अथवा देवता विशेष), धी (बुद्धि), स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। २१२. से किं तं अणेगक्खरिए ? अणेगक्खरिए अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा—कण्णा वीणा लता माला । से तं अणेगक्खरिए । [२१२ प्र.] भगवन् ! अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? [२१२ उ.] आयुष्मन् ! अनेकाक्षरिक नाम के भी अनेक प्रकार हैं। यथा—कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। विवेचन- सूत्र में द्विनाम का स्वरूप उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। द्विनाम का तात्पर्य है दो अक्षरों से बना हुआ नाम। किसी भी वस्तु का उच्चारण अक्षरों के माध्यम से होता है। अतः एक अक्षर से निष्पन्न नाम को एकाक्षरिक और एक से अधिक-अनेक अक्षरों से निष्पन्न होने वाले नाम को अनेकाक्षरिक कहते हैं। ___श्री, ही आदि नामों के अतिरिक्त इसी प्रकार के अन्य नामों को भी एकाक्षरिक नाम समझना चाहिए तथा वीणा, माला आदि दो अक्षरों के योग से निष्पन्न नामों की तरह बलाका, पताका आदि तीन अक्षरों या इनसे अधिक अक्षरों से निष्पन्न नामों को अनेकाक्षरिक नाम में अन्तर्हित जानना चाहिए। इन एकाक्षर और अनेकाक्षरों से निष्पन्न नाम से विवक्षित समस्त वस्तुसमूह का प्रतिपादन किये जाने से यह द्विनाम कहलाता है। नाम के द्वारा वस्तु वाच्य होती है। अतः अब प्रकारान्तर से वस्तुमुखेन द्विनाम का निरूपण करते हैं२१३. अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—जीवनामे य १ अजीवनामे य २ । [२१३] अथवा द्विनाम के दो प्रकार कहे गये हैं। यथा—१. जीवनाम और २. अजीवनाम। २१४. से किं तं जीवणामे ? जीवणामे अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा—देवदत्तो जण्णदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो । से तं
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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