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________________ १३२ अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन— उपक्रम के द्वितीय भेद नाम की प्ररूपणा की भूमिका रूप यह सूत्र है। नाम का लक्षण- जीव, अजीव रूप किसी भी वस्तु का अभिधायक-वाचक शब्द नाम कहलाता है। इस नाम के एक, दो, तीन आदि प्रकारों से दस भेद हैं। जिस एक नाम से समस्त पदार्थों का कथन हो जाए, वह एक नाम है। जैसे सत्। ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं जो सत्ता से विहीन हो अत: इस सत् नाम से लोकवर्ती समस्त पदार्थों का युगपत् कथन हो जाने से सत् एक नाम का उदाहरण है। इसी प्रकार जिन दो, तीन, चार यावत् दस नामों से समस्त विवक्षित पदार्थ कहने योग्य बनते हैं वे क्रमशः दो से लेकर दस नाम तक जानना चाहिए। अब क्रम से एक, दो आदि नामों के स्वरूप का निर्देश करते हैं। १. एकनाम २०९. से किं तं एगणामे ? एगणामे णामामि जाणि काणि वि दव्वाण गुणाण पजवाणं च । तेसिं आगमनिहसे नामं ति परूविया सण्णा ॥ १७॥ से तं एगणामे । [२०९ प्र.] भगवन् ! एकनाम का क्या स्वरूप है ? . [२०९ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो कोई नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी 'नाम' ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष (कसौटी) में कही गई है । १७ । यह एकनाम का स्वरूप है। विवेचन- सूत्र में एकनाम का स्वरूप बतलाया है। जीव, अजीव भेद विशिष्ट द्रव्यों के जैसे जीव, जन्तु, आत्मा, प्राणी, आकाश, नभस्, तारापथ व्योम, अम्बर इत्यादि और गुणों के यथा ज्ञान, बुद्धि, बोध इत्यादि तथा रूप, रस, गंध इत्यादि तथा नारकत्व आदि पर्यायों के जैसे नरक, तिर्यंच, मनुष्य आदि, एक गुण कृष्ण, दो गुण कृष्ण इत्यादि लोक में रूढ़ सभी नाम 'नामत्व' इस सामान्य पद से गृहीत हो जाने से वे एक नाम कहलाते हैं। ____ सारांश यह है कि संसार में द्रव्यों, गुणों, पर्यायों के सभी लोकरूढ़ नाम यद्यपि पृथक्-पृथक् हैं, किन्तु नामत्व सामान्य की अपेक्षा वे सब नाम एक ही हैं। . आगम की निकषरूपता— जैसे सोना, चांदी आदि के यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान निकषपट्ट (कसौटी) से होता है, उसी प्रकार जीवादि पदार्थों के स्वरूप का परिज्ञान आगम शास्त्र से। अतः उनके स्वरूप के परिज्ञान का हेतु होने से सूत्रकार ने आगम को निकष की उपमा से उपमित किया है। १. जंवत्थुणोभिहाणं पज्जयभेयाणुसारि तं णामं । पइभेअं जं नमई जाइ जं भणिअं॥ अनुयोगवृत्ति, पत्र १०४
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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